प्रिय पाठकों, आप सभी का स्वागत है। इस लेख के माध्यम से what is void agreement के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। इस ब्लॉग में शून्य करार, इसके प्रकारों, सट्टेबाजी की संविदा, बीमा की संविदाएं ,लॉटरी तथा महत्त्वपूर्ण तथ्यो से संबंधित उपबंधो के बारे में step by step सविस्तार से चर्चा करेंगे।

what is void agreement (शून्य करार)
void agreement (शून्य करार)-विधि द्वारा प्रवर्तनीय करार संविदा है। अतः संविदा विधि में जिन करारों को शून्य घोषित किया गया है उन्हें विधि द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता है। संविदा अधिनियम के तहत कुछ संविदाओं को शून्य घोषित किया गया है जो निम्नलिखित है-
(1) अयोग्य व्यक्तियों द्वारा किया गया करार शून्य होता है। (धारा-11)
(2) जबकि दोनों पक्षकार तथ्य की बात सम्बन्धी भूल में हो, तब करार शून्य है। (धारा-20)
‘3) किसी ऐसी विधि के बारे में, जो भारत में प्रवृत्त नहीं है, किसी भूल का वही प्रभाव है जो तथ्य की मूल का है अर्थात करार शून्य है। (धारा-21)
(4, हर एक करार, जिसका उद्देश्य या प्रतिफल विधि-विरुद्ध हो, तो करार शून्य होंगे। (धारा-23)
(5) यदि तिफल और उद्देश्य भागतः विधि-विरुद्ध हो, तो करार शून्य होंगे। (धारा-24) (6) कतिपय अपवादों के सिवाय प्रतिफल के बिना किया गया करार शून्य होता है। (धारा-25)
(7) ऐसा हर करार शून्य है जो अप्राप्तवय से भिन्न किसी व्यक्ति के विवाह के अवरोधार्थ हो। (धारा-26)
(8) हर करार जिससे कोई व्यक्ति किसी प्रकार की विधिपूर्ण वृत्ति, व्यापार या कारबार करने से अवरुद्ध किया जाता हो, उस विस्तार तक शून्य है। (धारा-27)
(9) किसी करार के द्वारा किसी व्यक्ति को प्रायिक विधिक कार्यवाही चलाने के लिए आत्यन्तिक रूप से अवरुद्ध किया जाता है तो ऐसा करार उस विस्तार तक शून्य होगा। (धारा-28)
(10) वे करार, जिनका अर्थ निश्चित नहीं है या निश्चित किया जाना सम्भव नहीं है, वे शून्य है। (धारा-29)
(11) पंचम के तौर के करार शून्य है। (धारा-30)
12) समाश्रित करार, जो किसी असम्भव घटना के घटित होने पर ही कोई बात करने या न करने के लिए हो, शून्य है। (धारा-36)
(13) वह करार, जो ऐसा कार्य करने के लिए हो, जो स्वतः असम्भव है, शून्य है। इसके अतिरिक्त कार्य करने की सविदा जो कि संविदा के पश्चात असम्भव हो या किसी ऐसी घटना के कारण जिसका निवारण प्रतिज्ञाकर्ता नहीं कर सकता विधि-विरुद्ध होकर शून्य होगी। (धारा-56)
अवैध करार क्या है?
अवैध करार- धारा-23 के अनुसार करार का प्रतिफल या उद्देश्य विधिपूर्ण है, सिवाय जबकि वह विधि द्वारा निषिद्ध हो, अथवा वह ऐसी प्रकृति का हो कि यदि अनुज्ञा किया जाये तो वह किसी विधि के उपबंध को विफल कर देगा अथवा वह कपटपूर्ण हो अथवा उसमें किसी अन्य के शरीर या सम्पति की क्षति अन्तर्वलित या विवक्षित हो अथवा न्यायालय उसे अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध माने। इन दशाओं में से हर एक में करार का प्रतिफल या उद्देश्य विधि-विरुद्ध कहलाता है। हर एक करार, जिसका उद्देश्य या प्रतिफल विधि-विरुद्ध हो, शून्य है।
what is void agreement with example
उदाहरणार्थ (1) क, ख और ग अपने द्वारा कपट से अर्जित किये गये या किये जाने वाले अभिलाभों को आपस में विभाजन के लिए करार करते हैं। करार शून्य है, क्योंकि उनका उद्देश्य विधि-विरुद्ध है।
(2) ख के लिए लोक सेवा में नियोजन अभिप्राप्त कराने का वचन क देता है और क को ख 1000 रु. देने का वचन देता है। करार शून्य है क्योंकि उसके लिए प्रतिफल विधि-विरुद्ध है।
(3) ख अपनी पुत्री को उपपत्नी के रूप में रखे जाने के लिए ख को भाड़े पर देने के लिए करार करता है। करार शून्य हैं क्योंकि यह अनैतिक है। यद्यपि इस प्रकार भाड़े पर दिया जाना भा.द.सं. के अधीन दण्डनीय न हो।
धारा-23 विधिपूर्ण उद्देश्य एवं प्रतिफल के बारे में प्रावधान करती है। यदि यह कह दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह धारा सम्पूर्ण संविदा अधिनियम की आत्मा है। कोई भी करार तब तक प्रवर्तनीय नहीं हो सकता है जब तक कि उसका उद्देश्य एवं प्रतिफल विधिपूर्ण न हो।
विधि द्वारा निषिद्ध– जब किसी सविदा का उद्देश्य विधि द्वारा निषिद्ध हो तो संविदा विधि-विरुद्ध होगी। जैसे-बिना लाइसेंस शराब बेचने की संविदा।
विधि को विफल करना-कभी-कभी ऐसे करार किये जाते है जो प्रत्यक्ष रूप से विधि द्वारा वर्जित तो नहीं है, परन्तु ऐसे है कि अगर लागू किया जाए तो किसी न किसी विधि को विफल कर देंगे। ऐसे करार भी शून्य होते हैं जैसे कि जमानत सम्बन्धी करार।
कपट- कपटपूर्ण उद्देश्य के लिए की गई संविदा शून्य होती है। जब दो पक्षकार किसी तीसरे पर कपट करने का करार करें तो यह अवैध होगा।
शरीर व सम्पत्ति को क्षति– दो व्यक्तियों में किसी तृतीय व्यक्ति के शरीर या उसकी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने का करार विधि-विरुद्ध होता है।
अनैतिक– प्रत्येक ऐसा करार जिसका उद्देश्य या प्रतिफल अनैतिक है, विधि-विरुद्ध है। उदाहरणार्थ-पीयर्स बनाम बुक्स (1866) के वाद में वादी ने प्रतिवादी को चार पहिये की गाड़ी किश्तों पर दी, वादी जानता था कि प्रतिवादी वेश्या है और उसका उपयोग अनैतिक पेशे के लिए करेगी। अतः किया गया करार शून्य होगा।
वचन श्रीमती नारायणी बनाम प्यारे मोहन, AIR 1972 RAJ. 25 के बाद में न्यायालय ने कहा कि भूतपूर्व मैथुन सम्बन्धों के लिए दिया गया वचन प्रवर्तनीय होता है किन्तु भविष्य मैथुन सम्बन्ध के लिए बचन प्रवर्तनीय नहीं होगा।
इसी प्रकार वे मैथुन सम्बन्ध जो जारकर्मी है अर्थात दोनों में से एक पक्षकार विवाहित है तो ऐसा वचन चाहे भूतपूर्व हो या भविष्य के लिए हो, प्रवर्तनीय नहीं होगा। जारकर्म केवल अनैतिक ही नहीं है बल्कि अपराध भी है। (ऐलिश मैरी हिल घ. विलियम करके 1905 इलाहाबाद)
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लोकनीति क्या है?
लोकनीति– कोई भी ऐसा करार जिसे न्यायालय लोकनीति के विरुद्ध माने विधि-विरुद्ध होगा। वर्तमान सामाजिक मूल्यों के हिसाब से कोई करार जो लोकहित को क्षतिग्रस्त करने का झुकाव रखता है या लोक कल्याण के खिलाफ है वह लोकनीति के विरुद्ध माना जाता है। लोकनीति की श्रेणियां निम्न है- (1) शत्रु के साथ व्यापार
(11) लोक पदों का विक्रय
(III) न्याय प्रणाली में हस्तक्षेप
(iv) अनुचित या अयुक्तियुक्त व्यहार
(v) विवाह दलाली के संविदा।
विभिन्न जाति के व्यक्तियों में शादी की संविदा विधि मान्य ठहरायी गयी है।
प्रभाव– अविधिपूर्ण उद्देश्य एवं प्रतिफल वाली संविदाएं शून्य होती है। न्यायालय द्वारा ऐसी संविदाओं का प्रवर्तन नहीं कराया जाता।
प्रतिफल और उद्देश्य भागतः विधि-विरुद्ध हो तो करार शून्य।
यदि प्रतिफल और उद्देश्य भागतः विधि-विरुद्ध हो तो करार शून्य होंगे– धारा-24 के अनुसार यदि एक या अधिक उद्देश्यों के लिए किसी एकल प्रतिफल का कोई भाग या किसी एक उद्देश्य के लिए कई प्रतिफलों में से किसी एक या किसी एक का कोई भाग विधि-विरुद्ध हो, तो करार शून्य है।
जहाँ किसी संविदा के एकाधिक उद्देश्य अथवा प्रतिफल हो और उनमें से भागतः विधिपूर्ण और भागतः विधि-विरुद्ध हो वहां यदि वे एक-दूसरे से पृथक नहीं किये जा सकते हो, तो सम्पूर्ण संविदा शून्य होगी। यदि वे एक-दूसरे से पृथक किये जा सकते हो, तो संविदा का विधिपूर्ण भाग वैध तथा विधि विरुद्ध भाग शून्य होगा। इस सिद्धान्त को पृथक्करण सिद्धान्त कहते है।
प्रतिफल के बिना करार
प्रतिफल के बिना करार– बिना प्रतिफल के किया गया करार शून्य होगा परन्तु इसके तीन अपवाद बताये गये है। इसका वर्णन प्रतिफल वाले अध्याय में किया गया है।
विवाह के अवरोधार्थ करार
विवाह के अवरोधार्थ करार– धारा-26 के अनुसार, ऐसा हर करार शून्य है जो अप्राप्तवय से भिन्न किसी व्यक्ति के विवाह के अवरोधार्थ हो। उदाहरणार्थ– क, ख से कहता है कि यदि तुम आजीवन विवाह न करो तो मैं तुम्हें 1000 रु. महिना देता रहूंगा। ख राजी हो जाता हैं, यह करार शून्य है। यह धारा इस सिद्धान्त पर आधारिता है कि ‘विवाह एवं वैवाहिक हैसियत प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है और यह लोक नीति के सर्वोत्तम हित में है।’
इग्लिश विधि के अधीन । ववाह में आशिक अवरोध पैदा करने वाले करारों को विधिमान्य माना गया है जबकि भारतीय विधि में अवरोध मात्र को चाहे वह आशिक हो या पूर्ण, अवैध माना गया है।
विवाह पर दण्ड लगाने वाली संविदाएं आवश्यक रूप से विवाह अवरोधक नहीं मानी जाती। राओरानी बनाम गुलाब रानी (1942) के विवाद में दो विधवाओं ने यह करार किया कि उनमें से यदि कोई भी पुनः विवाह करेगी तो मृत पति की सम्पति में अपना हिस्सा प्राप्त नहीं कर सकेगी। न्यायालय ने निर्णय दिया कि इसे किसी भी विधवा पर विवाह करने में रूकावट नहीं माना जा सकता तथा करार प्रवर्तनीय है।
अपवाद- इस नियम का एक ही अपवाद है और वह है-अवयस्कता। अवयस्क व्यक्ति के विवाह को रोका जा सकता है और ऐसा करार शून्य नहीं होता है।
व्यापार के अवरोधार्थ करार
व्यापार के अवरोधार्थ करार– धारा-27 के अनुसार, हर करार जिसमें कोई व्यक्ति किसी प्रकार की विधिपूर्ण वृत्ति, व्यापार या कारोबार करने से अवरुद्ध किया जाता हो, उस विस्तार तक शून्य है। सिवाय तब, जब कि उस करार की प्रगति की दृष्टि से ऐसी सौमाएं न्यायालय को युक्तियुक्त प्रतीत हो। सीमाओं का युक्तियुक्त होना कई बातों पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ गुडविल का क्षेत्र तथा उसके लिए दिए गए दाम। हर्बर्ट बनाम पेसेफिक पेट्रोलियम के वाद में कहा गया कि पांच साल के लिए परन्तु उससे अधिक नहीं प्रतिबन्ध साधारणतया युक्तियुक्त समझा जाता है।
इस धारा में व्यापार में आंशिक तथा पूर्ण अवरोध पैदा करने वाले करारों को सिवाय कतिपय अपवादों के शून्य घोषित किया गया है। ऐसे करारों को शून्य एवं लोकनीति के विरुद्ध मानने का एक मुख्य कारण व्यापार में एकाधिकार की प्रवृत्ति को रोकना है लेकिन यहां उल्लेखनीय है कि यदि अवरोध व्यापार की स्वतंत्रता के लिए युक्तियुक्त एवं आवश्यक है तो ऐसा करार शून्य नहीं होगा। माधवचन्द्र बनाम राजकुमार 1874 का वाद व्यापार का अवरोधक करार से संबंधित प्रमुख वाद है।
धारा-27 का एक अपवाद भी है। यदि विक्रेता व्यापार की गुडविल क्रेता को बेच देता है तो वह उसके साथ इस आशय का करार कर सकेगा कि विक्रेता एक निश्चित समय तक एवं विनिर्दिष्ट स्थानीय सीमाओं के अन्दर ऐसा कोई व्यापार करने से विरत रहेगा जैसा कि क्रेता का व्यापार चलता रहेगा, परन्तु यह तब जबकि उस करार की प्रगति की दृष्टि से ऐसी सीमाएं न्यायालय को युक्तियुक्त प्रतीत हो। सीमाओं का युक्तियुक्त होना कई बातों पर निर्भर करता है उदाहरणार्थ गुडविल का क्षेत्र तथा उसके लिए दिए गए दाम। हर्बर्ट बनाम पेसेफिक पेट्रोलियम के वाद में कहा गया कि 5 साल के लिए परन्तु उससे अधिक नहीं साधारणतः युक्तियुक्त समझा जाता है
अपवादों को मान्यता
न्यायालय ने भी निम्नलिखित अपवादों को मान्यता दी है-
(1) कोई भी करार जिसके द्वारा कोई कर्मचारी सेवाकाल के दौरान अपने नियोजन के साथ प्रतियोगिता न करने का वचन देता है, व्यापार का अवरोध नहीं है ऐसा करार शून्य नहीं माना जायेगा।
(॥) व्यापारिक समुच्चय जिसमें सामान्यतया यह करार किया जाता है कि निर्माता निश्चित मूल्य से नीचे माल नहीं बेचेंगे, ऐसा करार शून्य नहीं है। भोलानाथ शंकरदास बनाम लक्ष्मी नारायण (1904) के मामले में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसे संगठन जो किसी विशेष स्थान के व्यापारी बनाते हैं तथा यह करार करते हैं कि एक निश्चित मूल्य से कम मूल्य पर माल नहीं बेचा जाएगा तथा यदि कोई बेचेगा तो उस पर जुर्माना किया जायेगा, धारा-27 के विरुद्ध नहीं है। क्योंकि ऐसा ये इसलिए करते हैं जिससे उनके व्यापारिक हितों की रक्षा हो सके और अनावश्यक प्रतिस्पर्धा से बचा जा सके।
() यदि निर्माता करार करता है कि वह अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं को किसी विशिष्ट व्यक्ति को ही विक्रय करेगा तो ऐसा करार शून्य नहीं होगा। भागीदारी अधिनियम में कुछ उपबन्धों में भागीदारों के बीच व्यापार अवरोधक संविदाओं को वैध बताया गया हैं। धारा-11 के अन्तर्गत भागीदार यह अनुबन्ध कर सकते हैं, जब तक कि वे फर्म में भागीदार है, वे कोई अन्य व्यापार नहीं करेंगे। धारा-36 उन्हें रिटायर होने वाले भागीदार का मुकाबला करने की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार देती है। इसमें यह भी आवश्यक है कि अवरोध का काल या स्थानीय क्षेत्र बता दिया जाय और ये सीमाये युक्तियुक्त हो। धारा-54 के अन्तर्गत भी भागीदार ऐसो संविदा फर्म के विघटन पर या विघटन की आशा पर कर सकते हैं।
विधिक कार्यवाहियों के अवरोध करार
विधिक कार्यवाहियों के अवरोध करार– धारा-28 के अन्तर्गत दो किस्म के करार शून्य घोषित किये गये हैं-
(1) ऐसा करार, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को उसके अपने विधिक अधिकार जो संविदा द्वारा उत्पन्न हुए हैं, उन्हें विधिक कार्यवाही करनेसे वर्जित रखना,
(1) ऐसे करार जिसमे बाद लाने के लिए जो साधारण समय बताया गया है उसे कम करते हैं।
यहाँ यदि अवरोध आत्यन्तिक है तो करार शून्य होगा और यदि वह आशिक है तो मान्य एवं प्रवर्तनीय होगा।
यह धारा केवल ऐसे मामलों में प्रयोज्य होती है जहाँ किसी पक्षकार को किसी संविदा के अधीन या बारे में अपने अधिकारों के प्रवर्तन से अवरोधित किया जाता हैं यह डिक्रियों पर लागू नहीं होती।
अपील करने का अधिकार इस धारा को प्रभावित नहीं करता इसलिए पक्षकार यह करार कर सकते हैं कि वे किसी निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं करेंगे।
धारा-28 के अपवाद
धारा-28 के दो अपवाद है-
(1) यह धारा ऐसे करारों को शून्य नहीं करतो जिनके द्वारा पक्षकार अपने ऐसे विवाद जिनके पैदा होने की सम्भावना हो, उन्हें माध्यस्थम् द्वारा निपटाना चाहते हों।
(॥) जो विवाद पैदा हो चुके है उनके बारे में यह करार केवल माध्यस्थम् द्वारा निपटाये जायेंगे, यह भी शून्य नहीं होंगे।
अनिश्चित करार
अनिश्चित करार– धारा-29 के अनुसार, वे करार जिनका अर्थ निश्चित नहीं है या निश्चित किया जाना सम्भव नहीं है, शून्य है। उदाहरणार्थ ख को क ‘एक सौ टन तेल’ बेचने का करार करता है। उसमें यह दर्शित करने के लिए कुछ नहीं है कि किस तरह का तेल आशयित था। करार अनिश्चितता के कारण शून्य है।
धारा-29 ऐसे करारों को शून्य घोषित करती है जिसका अर्थ अस्पष्ट एवं संदिग्ध हो तथा जिसे निश्चित नहीं किया जा सकता हो।
उदाहरणार्थ– क, ख की सेवा करेगा और पारिश्रमिक का निर्धारण स्वयं ख अपने विवेकानुसार करेगा। इसे अप्रवर्तनीय करार माना गया। जहां पक्षकार प्रचलित बाजार भाव के अनुसार भुगतान करने का करार करते हैं और बाजार भाव को अभिनिश्चित किया जा सकता है. वहां इसे अनिश्चितता का करार नहीं माना जायेगा।
बाजी के करार
बाजी के करार– धारा-30 के अनुसार, पंद्यम के तौर के करार शून्य है। ऐन्सन के अनुसार, पंद्यम के तौर के करार वे होते है जिसने किसी अनिश्चित घटना के निश्वित हो जाने पर धन या धन के बदले वस्तु देने का वचन हो।
‘पंद्यम’ की मुख्य बात यह है कि घटना के घटने या न घटने से एक पक्ष जीतता है और दूसरा पक्ष हारता है।
उदाहरणार्थ– क व ख में यह ठहराव होता है कि यदि अमुक तिथि को ओले गिरे तो क, ख को 500 रु. देगा और यदि नहीं गिरे तो ख, क को 500 रु. देगा। पंद्यम करार होने के कारण यह करार शून्य है।
पद्यम करार
पद्यम करार- जब किसी घटना जिसकी प्रकृति अनिश्चित होती है, के प्रति दो पक्षकारों के मत पूर्णतया विपरीत होते है तथा उनका उस अनिश्चित घटना विशेष पर कोई नियन्त्रण नहीं होता है तथा उस घटना का निर्धारण पक्षकारों द्वारा इस प्रकार किया जाता है, कि एक पक्ष कुछ राशि या तो जीतेगा अ या हारेगा और पक्षकारों का उस घटना में जीतने या हारने के सिवाय कोई और हित नहीं होता है, ऐसा करार पद्यम करार कहलाता है।
पद्यम करार शून्य तो होते हैं किन्तु अवैध नहीं। सामान्यतया जुएं आदि वाले करारों को हतोत्साहित किया जाये इसलिए इसे शून्य माना जाता है।
पद्यम करार के अपवाद
पद्यम करार के दो अपवाद निम्न है-
(1) घुड़दौड– धारा-30 के बारे में यह नहीं समझा जायेगा कि यह ऐसे चन्दे या अंशदान को या चन्दा देने या अंशदान करने के ऐसे वचन को में कि घुड़दौड़ के विजेता या विजेताओं को दी जाने वाली 500 रु. या अधिक कीमत वाली किसी प्लेट, पारितोषिक या धनराशि के लिए दिया गया है, विधि-विरुद्ध कर देती है।
(1) वर्ग पहेलियों की प्रतियोगिता– यह किसी कार्य में कौशल का प्रयोग होता है और योग्यता के अनुसार इनाम दिये जाते हो तो ऐसी को प्रतियोगिता लॉटरी नहीं मानते है।
साहित्यिक प्रतियोगिताएं जिनमें कुशलता का प्रयोग होता है, पद्यम नहीं होती है।
सट्टेबाजी की संविदा
सट्टेबाजी की संविदा– किसी वस्तु का किसी विशेष दिन बाजार मूल्य तथा संविदा मूख्य का अंतर मालूम करके आपस में निपटारा कर लेने के करार को सट्टा कहते हैं। सट्टे का सौदा ही पद्यम करार माना जाता हैं। पद्यम करार शून्य होने के कारण न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं करवाया जा सकता है।
बीमा की संविदाएं
बीमा की संविदाएं– ऐनान ने बीमा की संविदाओं को ‘क्षतिपूर्ति की संविदा’ माना हैं। पार्टर के अनुसार “बीमा की संविदाएं पद्यम संविदाएं न होकर परिकल्पना की संविदाएं है।”
भारत में बीमा की संविदा को, यद्यपि यह एक अनिश्वित घटना पर आधारित होती है, मान्य एवं वैद्य समझा जाता है। शर्त यह है कि उसमें बीमाकृत व्यक्ति का हित निहित हो। इस प्रकार बीमा योग्य हित वाली संविदाएं पूर्णतः मान्य होती है और इसके अभाव में शून्य होती है।
परम विश्वास की संविदाएं छोटी से छोटी गलत सूचना के कारण निरस्त की जा सकती है। उदाहरणार्थ बीमा संविदा एवं भागीदारी संविदा।
लॉटरी
लॉटरी– भा.द.सं. की धारा-294 (क) के अन्तर्गत लॉटरी सम्बन्धी संव्यवहारो को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है और यही कारण कि इसे पंद्यम संविदा माना गया है।
सुभाषकुमार मनवानी बनाम म.प्र. राज्य के वाद में उच्यतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य द्वारा लॉटरी का आयोजन करना अवैध तो रहीं है परन्तु धारा 30 में बाजी करार होने के कारण शून्य है। सरकार से अनुमति लेकर भी लॉटरी का आयोजन करना भी धारा 30 के अन्तर्गत शून्य है। यदि किसी लॉटरी को सरकार से मान्यता प्राप्त हो तो यद्यपि वह भा.द.सं. के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं होगी फिर भी वह पंचम संविदा तो रहेगी ही। (8) असम्भव कार्य को करने का करार धारा-56 के तहत असम्भव कार्य करने के करार शून्य होते है। इसके अक्ति कार्य करने की संविदा जो कि संविदा के पश्चात असन्भव हो या किसी ऐसी घटना के कारण जिसका निवारण प्रतिज्ञाकर्ता नहीं कर सकता विधि-विरुद्ध होकर शून्य होगी।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- शून्य करार– (1) अवैध करार (2) प्रतिफल के बिना करार (3) विवाह के अवरोधात्मक करार (4) व्यापार के अवरोधात्मक करार (5) विधिक कार्यपाहियों के अवरोधात्मक करार (6) अनिश्चित करार (7) बाजी का करार (8) असंभव कार्य करने का करार।
• बाजी के करार के आवश्यक तत्व
(1) इसमें सौदे का परिणाम एक अनिश्चित घटना के निश्चयीकरण पर निर्भर करता है
(2) पारस्परिक लाभ या हानि की सम्भावना हो
(3) इसमें घटना का घटित होना किसी पक्षकार के नियन्त्रण में नहीं होता
(4) इसमें घटना के निश्चयीकरण में जीतने या हारने वाले धन या वस्तु के अतिरिक्त पक्षकारों का अन्य स्वार्थ नहीं होता है। [धारा-30]
कब किसी करार का प्रतिफल या उद्देश्य अवैध होगा?
कब किसी करार का प्रतिफल या उद्देश्य अवैध होगा?-
(1) यदि वह विधि द्वारा वर्जित है, या
(2) वह इस प्रकृति का है कि यदि अनुमति दी गई तो वह विधि के प्रावधानों को विफल कर देगा, या
(3) यदि वह कपटपूर्ण हो, या
(4) यदि उससे किसी व्यक्ति जिनके शरीर अथवा सम्पत्ति को क्षति पहुंचती हो, या
(5) यदि न्यायालय उसे अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध समझता हो। [धारा-23]
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