Plaint In CPC

प्रिय पाठकों, आप सभी का स्वागत है। इस लेख के माध्यम से Plaint In CPC के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। इस ब्लॉग में वाद-पत्र क्या हैं ?, इसकें प्रस्तुतीकरण, वाद-पत्र में अन्तर्विष्ट की जाने वाली विशिष्टियाँ, वाद-पत्र ग्रहण करने पर प्रक्रिया, वाद-पत्र का लौटाया जाना व लौटाये जाने पर प्रक्रिया, वाद-पत्र को नामंजूर किया जाना नियम-9 के उपबन्धों का न पालन करना, अन्य कारणतथा महत्त्वपूर्ण तथ्यो से संबंधित उपबंधो के बारे में step by step सविस्तार से चर्चा करेंगे।

Plaint In CPC

वाद-पत्र क्या हैं ?

आदेश-4 में केवल दो नियम हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश 4 में संशोधन किया है। यह संशोधन 26 जुलाई, 1996 से प्रभावी है। आदेश-4 के उपबन्ध इस प्रकार है-

1. प्रत्येक वाद न्यायालय में या उस हेतु न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी के समक्ष वाद-पत्र की दो प्रतियों के प्रस्तुतीकरण से संस्थित होगा (नियम-1 (1))

2. प्रत्येक वाद-पत्र आदेश 6 तथा 7 में वर्णित नियमों के अनुपालन में होगा (नियम-1(2))।

3. वाद को सम्यक् रूप से संस्थित किया गया तभी माना जायेगा जबकि उपनियम-1 और 2 की शर्तें पूरी हों (नियम-1(3))।

4. न्यायालय प्रत्येक वाद के विवरणों को सिविल वादों की पंजिका में प्रविष्ट करायेगा। ऐसी प्रविष्टियों को वाद-पत्र के स्वीकार किये जाने के क्रम में प्रत्येक वर्ष के लिए क्रमांकित किया जायेगा (आदेश- नियम-2)।

Plaint In CPC तथा इसका प्रस्तुतीकरण

‘वाद-पत्र’ (Plaint)शब्द संहिता में परिभाषित नहीं है। असम राज्य बनाम पाथुम्मा, 1899 में यह धारण किया गया कि वाद-पत्र एक निजी स्मारिका है। यह न्यायालय के समक्ष निविदत्त किया जाता है। इसमें वादी वाद-कारण प्रस्तुत करता है। वाद-पत्र कार्यवाही का लिखित प्रदर्शन है। वादी स्वयं या उसकी ओर से प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति बाद प्रस्तुत कर सकता है।

इस सम्बन्ध में कोई अन्तिम नियम नही है कि वाद-पत्र किस समय तथा किस स्थान पर प्रस्तुत किया

जायेगा। सामान्यतः वाद-पत्र कार्यालय अवधि में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। न्यायाधीश वाद-पत्र को कार्यालय अवधि के पश्चात् अपने निवास या अन्य स्थान पर भी स्वीकार कर सकता है।

दीनराम Vs. हरिदास 1912, इलाहाबाद पूर्ण पीठः के मामले में यह धारित किया गया है कि वादपत्र न्यायालय द्वारा किसी छुट्टी के दिन भी ग्रहण किया जा सकता है। वादपत्र न्यायालय के कार्य-दिवस (कार्यालय की अवधि) की समाप्ति पर और न्यायाधीशों के क्लब पर या न्यायाधीश के निजी आवास पर भी ग्रहण किया जा सकता है। लेकिन न्यायालय वादपत्र को न्यायालय के परिसर के बाहर स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं है।

वाद तभी सम्यक् रूप से सस्थित माना जायेगा जब वह उपनियम (1) और (2) में विनिर्दिष्ट नियमों का अनुपालन करता हो (भट्टी हरि नायक बनाम विद्यावती गुप्ता 2005 कलकत्ता)।

यदि बहुत असुविधाजनक न हो तो न्यायाधीश को वाद-पत्र ऐसे मामलें में अवश्य स्वीकार कर लेने चाहिए जिसमें वाद परिसीमा अवधि के अन्तिम दिन प्रस्तुत किया गया है। वादपत्र वह दस्तावेज है जिसे न्यायालय में प्रस्तुत करके वादी वाद संस्थित करता है तथा जिसमें वह उन सभी तथ्यों का अभिवचन करता है जिनके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष की माँग करता है। वादी को अपने वाद-पत्र में ऐसी विशिष्टियों का वर्णन करना चाहिये जिससे प्रतिवादी तथा न्यायालय वाद-पत्र से यह सुनिश्चित करने के लिये समर्थ हो सकें कि क्या तथ्य और विधि के सम्बन्ध में वाद-हेतुक उत्पन्न हुआ है अथवा नहीं

नोटः वाद-पत्र में केवल वाद-हेतुक का गठन करने वाले तथ्यों का ही कथन किया जाना चाहिये न कि उसके विधि क प्रभाव का।

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what is void agreement

Revision In CPC

वाद-पत्र में अन्तर्विष्ट की जाने वाली विशिष्टियाँ

Order 8 rule 1-8  के अनुसार वाद-पत्र में निम्न विशिष्टियाँ अन्तर्विष्ट होनी चाहिये-

1. उस न्यायालय का नाम जिसमें वाद लाया गया है;

2. वादी का नाम, वर्णन और निवास स्थान

3. जहाँ तक अभिनिश्चित किया जा सकें, प्रतिवादी का नाम, वर्णन और निवास स्थान;

4. जहाँ वादी या प्रतिवादी अवयस्क या विकृत-चित्त व्यक्ति है. वहाँ उस भाव का कथन;

5. वह तथ्य जिनसे वाद-हेतुक गठित है, और वह कब पैदा हुआ;

6. यह दर्शित करने वाले तथ्य कि न्यायालय की अधिकारिता है:

7. वह अनुतोष जिसका वादी दावा करता है;

8. जहाँ वादी ने कोई मुजरा अनुज्ञात किया है या अपने दावे का कोई भाण त्याग दिया है वहाँ ऐसी अनुज्ञात की गई या त्यागी गई रकम;

9. अधिकारिता के और न्यायालय-फीस के प्रयोजनों के लिये वाद की विषय-वस्तु के मूल्य का ऐसा कथन जो उस मामले में किया जा सकता है;

10. यदि वाद धन की वसूली के लिये है तब दावाकृत ठीक रकम किन्तु जहाँ वाद अन्तः कालीन लाभों के लिये या ऐसी रकम के लिये है जिस का प्राक्कलन वादी युक्तियुक्त तत्परता से भी नहीं कर सकता है। वहाँ उस रकम का लगभग मात्रा में कथन। (O-7 r-2)

11. यदि वाद की विषय-वस्तु अचल सम्पत्ति है तब सम्पत्ति का ऐसा विवरण जो उसकी पहचान किये जाने हेतु पर्याप्त हो। (O-7 r-3)

12. जहाँ वादी प्रतिनिधि की हैसियत से वाद लाता है, वहाँ वे तथ्य जो यह प्रदर्शित करते हैं कि वादी का विषय-वस्तु में विद्यमान हित है, और यह कि उसने ऐसे वाद को संस्थित करने के लिये समर्थ बनाने हेतु सभी आवश्यक कदम उठा लिये हैं। ( 0 .7 r 4 )

13. वाद की विषय-वस्तु में प्रतिवादी का हित और उसका दायित्व। (O-7 r-5)

14. उन आधारों का कथन जिस पर परिसीमा-विधि से छूट का दावा किया जाता है, जबकि वाद समय बाधित है। (O-7 r-6)

15. उस अनुतोष का विनिर्दिष्ट रूप से कथन जिसके लिये वादी सामान्यतः या अनुकल्पतः दावा करता है। यदि वादी समान वाद-हेतुक के संबंध में एक से अधिक अनुतोष प्राप्ति का अधिकारी है तो समस्त अनुतोष या उनमें से जो अनुतोष वह वाहे।(O-7 r-7) ;

16. पृथक आधारों पर आधारित अनुतोषों का पृथक पृथक रूप से कथन। (O-7 r-8)

वाद-पत्र ग्रहण करने पर प्रक्रिया

वाद-पत्र ग्रहण करने पर प्रक्रिया : Order 7 RULE 9 के अनुसार जहाँ न्यायालय यह आदेश देता है समन की तामील प्रतिवादियों पर Order 5 RULE 9 में उपबन्धित रीति से किया जाय, वहाँ वह वादी को निर्देश देगा कि वह वाद-पत्र की सादा कागज पर उतनी प्रतियाँ जितने कि प्रतिवादी हैं, ऐसे आदेश के दिन से सात दिन के भीतर प्रतिवादियों पर समन की तामीली के लिये अपेक्षित शुल्क सहित उपस्थित करे।

वाद-पत्र का लौटाया जाना व लौटाये जाने पर प्रक्रिया

वाद-पत्र का लौटाया जाना व लौटाये जाने पर प्रक्रिया निम्न है-

Order 7 – R1 (1) के अनुसार, Rule 10A के उपबन्धों के अधीन रहते हुये, वाद-पत्र के किसी भी प्रक्रम पर उस न्यायालय में उपस्थित जाने के लिय लौटा दिया जायेगा। सिजमें वाद संस्थित किया जाना चाहिये था।

Order 7 Rule 10 (2) के अनुसार न्यायाधीश वादपत्र के लौटाये जाने पर उसके उपस्थित किये जाने की और लौटाये जाने की तारीख उपस्थित करने वाले पक्षकार का नाम और उसके लौटाये जाने के कारणों का संक्षिप्त कथन पृष्ठाकित करेगा।

जहाँ वादी द्वारा दावाकृत अनुतोष का कम मूल्यांकन किया गया है और वादी मूल्यांकन को न्यायालय द्वारा नियत अथवा विस्तृत किये गये समय के भीतर शुद्ध नहीं कर देता है तब वाद-पत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। इस आधार पर वाद-पत्र नामंजूर करने के लिये न्यायालय केवल वाद-पत्र पर विचार करेगा। किसी अन्य वाह्य परिस्थिति पर नहीं।

वाद-पत्र को नामंजूर किया जाना

वाद-पत्र को नामंजूर किया जाना (आदेश-7 नियम-11): Order 7 Rule 11, वादपत्र को नामंजूर किये जाने का उपबन्ध करता है। जिसके अनुसार निम्नलिखित परिस्थितियों में न्यायालय वाद-पत्र को नामंजूर कर सकता है-

जहाँ वाद-पत्र वाद हेतुक प्रकट नहीं करता है

वाद संस्थित किये जाने के लिये वाद-पत्र में उन सभी तथ्यों का दर्शाया जाना जिनसे वाद हेतुक गठित होता है नितांत आवश्यक है (Order 7 Rule 1,) । अतः यदि वादी द्वारा दाखिल किये गये वाद-पत्र से कोई वाद हेतुक स्पष्ट नहीं होता है तो न्यायालय उसे नामंजूर कर देगा। इस आधार पर वाद-पत्र नामंजूर करने के लिये न्यायालय केवल वाद-पत्र पर विचार करेगा और किसी बात पर नहीं किन्तु जहाँ वाद-पत्र किसी दस्तावेज पर आधारित है, वहाँ ऐस दस्तावेजों को भी देखा जा सकता है।

जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया है:

वाद को विषय बस्तु का मूल्यांकन किया जाना दो कारणों से आवश्यक है-

1. न्यायालय के आर्थिक क्षेत्राधिकार के निर्धारण के लियेः एवं

2. कोर्ट फीस निर्धारित करने के लिये क्योंकि कोर्ट फीस भी बाद की विषय वस्तु के मूल्य के अनुसार ही कम या अधिक होती है।

जहाँ वाद-पत्र अपर्याप्त स्टाम्प पत्र पर लिखा गया है

जहाँ अनुतोष का मूल्यांकन तो ठीक किया गया है, किन्तु वाद-पत्र अपर्याप्त स्टाम्प पत्र पर लिखा गया है अर्थात् वादी ने कम कोर्ट फीस लगाया है वहाँ यदि वादी अपेक्षित स्टाम्प-पत्र, उस अवधि के अन्दर जो न्यायालय ने इस हेतु निश्चित किया है या यदि न्यायालय ने ऐसी अवधि को बढ़ा दिया है, देने में असफल रहता है तो न्यायालय वाद-पत्र को नामंजूर कर देगा। यदि वादी कोर्ट फीस नहीं दे सकता है तो वह बाद को अकिंचन वाद के रूप में चालू रखने के लिये आवेदन दे सकता है।

जहाँ वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है:

जहाँ वाद-पत्र में कथनों से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है, वहाँ न्यायालय वाद-पत्र नामंजूर कर देगा यथा जहाँ किसी व्यक्ति के विरुद्ध संसद में दिये गये अपमानजनक वक्तव्य के बारे में नुकसानों के लिये वाद संस्थित किया गया है, वहाँ ऐसा वाद भारतीय संवधिान अनुच्छेद-105 (2) में के उपबन्धों के अधीन वर्जित है। इसी तरह जहाँ वाद सरकार के विरुद्ध और वाद-पत्र में यह नहीं कहा गया है कि धारा-80 आवश्यक सूचना सरकार को दी गई है।

आदेश-7 नियम-11 के अन्तर्गत वाद-पत्र परिसीमा के वर्जन (bar of limitation) के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।

उच्चतम न्यायालय के अनुसार एक वाद जो पक्षकारों और बाद हेतुको के कुसंयोजन के कारण सदोष (bad) है, किसी भी नाते नहीं कहा जा सकता कि आंदेश-7 नियम-11 (घ) के अर्थों में किसी विधि द्वारा वर्जित है। अतः पक्षकारों और वाद हेतुकों का कुसंयोजन वादपत्र के खारिज किये जाने का कारण नहीं बन सकता।

दो प्रतियों का न दाखिल करना वाद-पत्र के नामंजूर किये जाने या खारिज करने का एक कारण यह भी है कि इसकी दो प्रतियाँ न दाखिल की जाय। सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1999 के अनुसार अब वाद संस्थित करने के लिए वाद-पत्र की दो प्रतियाँ प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

नियम-9 के उपबन्धों का न पालन करना

जहाँ वादी नियम-9 के प्रावधानों का पालनकरने में असफल रहता है, वहाँ वह वाद के खारिज किये जाने का कारण बनता है।

जहाँ वादी ने वाद-पत्र की दो प्रतियों दाखिल नहीं की है या उसने आदेश-7 नियम-१ के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया है, वहाँ वाद-पत्र के खारिज किये जाने के लिये ये अब आधार बनते हैं। ऐसा नये प्रावधानों के कारण हुआ है। परन्तु नये प्रावधानों में वाद-पत्र के अपने आप खारिज किये जाने की अपेक्षा नहीं की जाती। यदि आदेश-7 नियम-11(ङ) और (च) द्वारा अपेक्षित अनुपालन में कोई त्रुटि है या उनमें अपेक्षित प्रावधानों का पालन नहीं हुआ तो न्यायालय को वाद-पत्र को खारिज किये जाने से पूर्व सामान्यतया त्रुटियों के निवारण के लिय अवसर प्रदान करना चाहिये।

अन्य कारण

जहाँ किसी के चुनाव को भ्रष्ट आचरण के आधार पर चुनौती दी जाती है, और याचिका में न तो तात्विक तथ्यों का कथन किया जाता है। और न ही भ्रष्ट आचरण का पूर्ण विवरण (जैसा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 83 की आवश्यकता है) दिया जाता है, वहाँ उच्चतम न्यायालय ने शुभाष देसाई बनाम शरद जे० राव 1994 S.C. नामक वाद में अभिनिर्धारित किया कि चुनाव याचिका खारिज की जा सकती है।

वाद-पत्र कार्यवाही के किसी भी प्रक्रप पर खारिज किया जा सकता है। यदि न्यायालय यह पाता है कि आदेश-7 नियम 11 की शर्ते विद्यमान हैं इसके लिये वाद के पक्षकार के आवेदन की आवश्यकता नहीं है। परन्तु वाद-पत्र का आशिक रूप से खारिज किया जाना अनुज्ञेय नहीं है।

जहाँ धारा 92 के अन्तर्गत न्यायालय ने वाद-संस्थित किये जाने के लिये अनुमति मांगे जाने पर पक्षकारों को सुनने के पश्चात् ऐसी अनुमति दी, वहां उच्चतम न्यायालय ने आर० यम० यल्लात्ती बनाम असिस्टेन्ट इक्जीक्यूटिव इंजिनियर, 2006 के वाद में अभिनिर्धारित किया कि वाद को आदेश 7 नियम 11 में खारिज करने का प्रश्न नहीं उठता। खारिजी का आवेदन वाद सस्थित किये जाने की अनुमति दिये जाने से पूर्व या स समय जब अपीलार्थी ने अनुमति दिये जाने का विरोध किया, दिया जाना चाहिये था।

यदि आदेश 7 नियम 11 के अन्तर्गत आवेदन किया गया है तो ऐसे आवेदन पर विचार करने में यह तथ्य बाध क नहीं हो सकता कि बाद में विवाद्यक विरचित किये जा चुके हैं। जहाँ वाद-पत्र के खारिज किये जाने हेतु आवेदन किया गया है, वहाँ उस पर निर्णय वाद-पत्र में दिये गये प्रकथन के आधार पर किया जा सकता है, उसके लिये प्रतिवाद करने वाले प्रतिवादी द्वारा लिखित कथन दाखिल किया जाना अनिवार्य नहीं है।

वाद-पत्र के नामंजूर किये जाने की प्रक्रिया

वाद-पत्र के नामंजूर किये जाने की प्रक्रिया: जहाँ वाद-पत्र नामंजूर किया जाता है वहां न्यायालय इस भाव का आदेश, कारणों सहित अभिलिखित करेगा।

जहाँ वाद-पत्र की नामंजूरी से ने वाद-पत्र का उपस्थित किया जाना प्रवारित नहीं होता: इसमें इसके पूर्व वर्णित आधारों में से किसी पर भी वाद-पत्र के नामंजूर किये जाने पर केवल नामंजूरी के ही कारण वादी उसी वादी हेतुक के बारें में नया वाद-पत्र उपस्थित करने से प्रवारित नहीं हो जाएगा।

वादों का समेकन

वादों का समेकन (आदेश-4-क) :

आदेश-4-क, संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा नियोजित किया गया है। जो फरवरी, 1977 से प्रवर्तन में आया। यह वादों या कार्यवाहियों के समेकन से संबंधित है। यह आदेश न्यायालय को न्यायहित में दो या अधिक वादों या कार्यवाहियों के संयुक्त विचार करने की शक्ति प्रदान करता है।

एक ही न्यायालय में लम्बित दो या अधिक वाद या कार्यवाहियाँ आदेश-4-क के अन्तर्गत समेकित की जा सकती हैं। समेकन के पश्चात इन्हें एक साथ विनिश्चित किया जा सकेगा।

CPC में वाद क्या है?

CPC के आदेश 7, नियम 8 में प्रतिनिधि वाद दायर करने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। प्रतिनिधि वाद तब दायर किया जा सकता है जब किसी वाद में समान हित रखने वाले अनेक व्यक्ति हों। यह वाद सभी हितधारक पक्षकारों की ओर से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा दायर किया जा सकता है।

वादी और लिखित बयान में क्या अंतर है?

वादी वह व्यक्ति होता है जो वाद-पत्र प्रस्तुत करता है। वाद-पत्र एक तरह की याचिका होती है जिसमें प्रतिवादी के खिलाफ़ विशिष्ट आरोप होते हैं, जैसे कि प्रतिवादी ने वादी के अधिकारों में हस्तक्षेप किया है। दूसरी ओर, वादी के आरोप सही हैं या नहीं, इस पर प्रतिवादी अदालत में एक लिखित बयान प्रस्तुत करता है।

वाद पत्र कब लौटाया जाता है?

नियम 10 के अनुसार यदि कोई वाद किसी दूसरे न्यायालय में प्रस्तुत करने की बजाय गलत न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया गया हो, तो न्यायालय द्वारा उस वाद के किसी भी प्रक्रम पर नियम 10- क के अधीन रहते हुए, उस वादपत्र को वादी को लौटा दिया जावेगा। वादपत्र लौटाने की कार्यवाही अपील-न्यायालय भी नियम 10-ख के अधीन कर सकता है।

वादी कब लौटाया जाता है और वादपत्र कब खारिज किया जाता है?

जब कोई वादपत्र वादी के वकील या मान्यता प्राप्त एजेंट को लौटा दिया जाता है, तो उसके पक्ष में निष्पादित प्राधिकार भी उसे लौटा दिया जाएगा । किसी वादपत्र को उचित न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए लौटाते समय न्यायालय वादी को वादपत्र के स्थान पर अभिलेख में दर्ज करने के लिए वादपत्र की एक प्रति दाखिल करने का आदेश दे सकता है।

वादी की वापसी के लिए आवेदन कौन दाखिल कर सकता है?

सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश 7 नियम 10 (वाद की वापसी) के तहत एक आवेदन केवल वादी द्वारा बनाए रखा जा सकता है, न कि किसी मुकदमे में प्रतिवादी द्वारा।

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