Attachment Before Judgement

प्रिय पाठकों, आप सभी का स्वागत है। इस लेख के माध्यम से  निर्णय-पूर्व कुर्की (Attachment before judgement) के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। । इस ब्लॉग में हम निर्णय-पूर्व कुर्की (Attachment before judgement) के परिचय, आधार, महत्वपूर्ण प्रावधान,प्रमुख अंतरिम आदेश, कुर्की आदेश (Attachment Orders)जारी करने के दिशानिर्देश, प्रतिवादी के अधिकारों की सुरक्षा,अनुचित कुर्की के लिए प्रतिकर के बारे में step by step सविस्तार से चर्चा करेंगे।

Attachment Before Judgement

निर्णय-पूर्व कुर्की (Attachment before judgement)

किसी वाद या कार्यवाही में न्यायालय न्यायहित में अंतरिम या मध्यवर्ती आदेश पारित कर सकता है। ऐसे आदेश पक्षकारों के अधिकारों व दायित्वों को अंतिमतः अवधारित नहीं करते। धारा-94 (ङ), C.P.C. के अनुसार वाद के संस्थन के पश्चात किन्तु इसके अन्तरिम निस्तारण से पूर्व न्यायालय उचित एवं सुविधाजनक मध्यवर्ती आदेश पारित कर सकता है।

प्रमुख अंतरिम आदेश

  1. निर्णय से पूर्व गिरफ्तारी (0-38)।
  2. निर्णय से पूर्व कुर्की (0-38)1
  3. प्रापक की नियुक्ति (0-40)।
  4. अस्थायी व्यादेश जारी करना (0-39)।
  5. कमीशन जारी करना (0-26)।

निर्णय-पूर्व कुर्की (Attachment before judgement) : परिचय

  • इस संहिता के आदेश 38 नियम 5 से 13 में किये गये हैं।
  • न्यायालय द्वारा प्रदत्त आज्ञप्ति दोनों पक्षकारों पर बाध्यकारी होती है। यदि प्रतिवादी ऐसी आज्ञप्ति से बचना चाहता है या उसे विफल करना चाहता है, तो उसके इस प्रयास को रोकने व न्याय का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए न्यायालय प्रतिवादी की निर्णय से पूर्व गिरफ्तारी अथवा उसकी सम्पत्ति की निर्णय से पूर्व कुर्की (Attachment before judgement) करने का आदेश देता है।
  • इस प्रकार इसका उद्देश्य आज्ञप्ति के प्रभावों को सुनिश्चित करना एवं प्रतिवादी को आज्ञप्ति के विफल करने के प्रयास से रोकना है।

निर्णय-पूर्व कुर्की (Attachment before judgement) आधार

  • यदि वाद के किसी भी प्रक्रम पर न्यायालय को शपथ पत्र पर या अन्यथा यह समाधान हो जाय कि प्रतिवादी अपने विरुद्ध पारित की जाने वाली आज्ञप्ति के निष्पादन में :

1. अवरोध पैदा करने, अथवा 2. विलम्ब करने के आशय से-

    1. अपनी सम्पत्ति का व्ययन करने वाला है, या

    2. न्यायालय के स्थानीय क्षेत्राधिकार से अपनी सम्पत्ति को हटाने वाला है;

    • तो न्यायालय प्रतिवादी को यह आदेश दे सकेगा कि 1. वह प्रतिभूति क्यों न दे? इसका हेतु संदर्शित करे, या 2.वह उक्त सम्पत्ति को या उसके मूल्य को या किसी पर्याप्त भाग को प्रस्तुत करें या न्यायालय के व्ययनाधीन के लिए प्रत्याभूति दे, या 3. आदेश में उल्लिखित सम्पत्ति की सशर्त कुर्की की जाय।
    • इस प्रकार न्यायालय उपर्युक्त आधारों पर प्रतिवादी की सम्पत्ति को निर्णय से पूर्व कुर्क करने का आदेश दे सकेगा। यदि न्यायालय निर्णय से पूर्व कुर्की का आदेश नियम-5 (1) को पूरा हुए बिना ही कर देता है तो आदेश शून्य होगा।

    निर्णय-पूर्व कुर्की (Attachment before judgement) महत्वपूर्ण प्रावधान

    • आदेश 38, नियम-5 आज्ञापक प्रकृति का प्रावधान है। अर्थात जब तक कि अभिलेख आदेश 38 नियम 5(1) की अपेक्षाओं को पूर्ण नहीं करता है, कोई भी न्यायालय कुर्की का आदेश नहीं देगा (Onkar Mal Mital V. State Bank of Patiala, 1992, P & H)1
    • परन्तु यदि प्रतिवादी कोई उचित हेतु संदर्शित कर दे, तो कुर्की का आदेश रद्द कर दिया जायेगा, यदि वह दिया जा चुका है (0-38, R-6)।
    • आदेश 38, नियम-12 के द्वारा किसी कृषक के कब्जे में होने वाली कृषि की पैदावार को निर्णयपूर्व कुर्क करने और पेश करने के आदेश देने को प्रतिबंधित कर दिया है।
    • इसी प्रकार नियम-13 के अन्तर्गत लघुवाद न्यायालय अचल सम्पत्ति को कुर्क करने का आदेश देने से प्रतिबंधित किये गये है।

    कुर्की आदेश (Attachment Orders)जारी करने के दिशानिर्देश

    • वाद खारिज हो जाने के बाद भी ऐसा आदेश रद्द किया जायेगा (नियम-9)1 क्योकि कुर्की का उपचार एक असामान्य उपचार है अतः इसे प्रदान करते समय न्यायालय को अत्यधिक सतर्कता बरतनी चाहिए (Ratan Kumar Poddar v. the Howrah Motor Co. Pvt. Ltd. 1975)।

    प्रतिवादी के अधिकारों की सुरक्षा

    • उपनियम-4 सन् 1976 के अधिनियम संख्या 104 द्वारा जोड़ा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रतिवादी को उसके साथ होने वाले अन्याय से बचाना है।

    अनुचित कुर्की के लिए प्रतिकर

    जहाँ न्यायालय को प्रतीत हो कि-

    1. गिरफ्तारी अथवा कुर्की के लिए दिया गया आदेश अपर्याप्त आधारों पर अवलम्बित था, या
    2. वाद खारिज कर दिया जाता है और न्यायालय को यह प्रतीत होदा है कि चाद संस्थित करने का संभाव्य या पर्याप्त अधिकार नहीं था, तो न्यायालय प्रतिवादी के खचों के लिए या उसको होने वाली क्षति प्रतिष्ठा की क्षति भी) के लिए वादी के विरुद्ध. 1000 रु से अनिधक कोई युक्ति-युक्त धनराशि (यदि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अन्दर हो) प्रतिकर के रूप में देने का आदेश दे सकेगा।

    निर्णय से पहले कुर्की का क्या मतलब है?

    निर्णय से पहले कुर्की का मतलब है कि वादी (plaintiff) के अनुरोध पर, न्यायालय प्रतिवादी (defendant) की संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्णय के बाद संपत्ति का उपयोग वसूली के लिए किया जा सके।

    CPC की कौन सी धारा निर्णय से पहले कुर्की से संबंधित है?

    CPC की धारा 94 और आदेश 38 निर्णय से पहले कुर्की (Attachment Before Judgment) से संबंधित हैं।

    निर्णय से पहले कुर्की का उद्देश्य क्या है?

    इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रतिवादी संपत्ति को छुपा न सके, स्थानांतरित न कर सके, या नष्ट न कर सके, जिससे वादी को नुकसान हो।

    निर्णय से पहले कुर्की के लिए कौन आवेदन कर सकता है?

    वादी (plaintiff) आवेदन कर सकता है यदि उसे लगता है कि प्रतिवादी संपत्ति को निर्णय से पहले छुपाने या स्थानांतरित करने की योजना बना रहा है।

    निर्णय से पहले कुर्की के लिए क्या शर्तें हैं?

    न्यायालय को यह विश्वास होना चाहिए कि:
    1. प्रतिवादी संपत्ति को बेचने, छुपाने या स्थानांतरित करने की कोशिश कर रहा है।
    2.वादी को संपत्ति से जुड़े अपने दावे में नुकसान हो सकता है।

    क्या न्यायालय प्रतिवादी को बिना सूचना के कुर्की का आदेश दे सकता है?

    हां, यदि न्यायालय को लगता है कि प्रतिवादी को सूचना देने से वह संपत्ति छुपा सकता है, तो न्यायालय बिना सूचना दिए आदेश पारित कर सकता है

    प्रतिवादी कुर्की के आदेश के खिलाफ क्या कर सकता है?

    प्रतिवादी कुर्की के आदेश को चुनौती देने के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकता है और संपत्ति को मुक्त करने के लिए सुरक्षा (security) दे सकता है।

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