Bharan Poshan Bhatta

प्रिय पाठकों, आप सभी का स्वागत है। इस लेख के माध्यम से Bharan Poshan Bhatta के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। इस ब्लॉग में भरण-पोषण की सामान्य जानकारी के साथ-साथ इसके लाभार्थी, उपचार, पत्नी का कब हकदारिणी न रह जाना, पति द्वारा साथ रहने का प्रस्ताव करने पर, पत्नी द्वारा भरण-पोषण की माँग करना, इसके आदेशो का अपालन करना, bharan poshan कार्यवाही की प्रक्रिया, इसके आवेदन का स्थान, साक्ष्य का अभिलेखन, एकपक्षीय आदेश, व्यय (Cost),भरण-पोषण भत्ते में परिवर्तन तथा आदेश का प्रवर्तन, मुस्लिम महिला का भरण-पोषण का अधिकार, धारा-125 का विकल्प, Bharan Poshan के लम्बित वाद तथा भरण-पोषण के महत्त्वपूर्ण तथ्यो से संबंधित उपबंधो के बारे में step by step सविस्तार से चर्चा करेंगे। भरण-पोषण भत्ता

Bharan Poshan Bhatta

bharan poshan act in hindi

दण्ड प्रक्रिया संहिता का अध्याय-9 (धारायें-125-128), पत्नी, संतानों एवं माता-पिता के भरण-पोषण के संबंध में आवश्यक प्रावधान करता है। यह अध्याय एक सामाजिक उद्देश्य रखता है। यह उद्देश्य, भरण-पोषण न किये जाने के कारण किसी पत्नी, संतान या माता-पिता द्वारा अपराध की ओर उन्मुख होने से रोकता है। इस प्रकार यह भुखमरी एवं आवारागर्दी निवारित करता है। यह एक राहतकारी प्रकृत का प्रावधान है।

इस अध्याय के अन्तर्गत निविष्ट उपबन्धों को विषय-वस्तु, यद्यपि दीवानी प्रकृति की है, परन्तु दण्ड प्रक्रिया संहिता में सम्मिलित करने का प्रारम्भक उद्देश्य यह है कि इसमें उल्लिखित व्यक्तियों को दीवानी न्यायालयों में उपलब्ध उपचारों की अपेक्षा कहीं अधिक त्वरित और कम खर्चीला उपचार मिल सके।

इस अध्याय के सभी उपबन्ध सभी व्यक्तियों पर समान रूप से, बिना धर्म का भेदभाव किये लागू होते हैं। इस तरह ये उपबन्ध पक्षकारों की स्वीय विधियों से, न तो संबंध रखते हैं और न उन्हें उपवर्णित करते हैं। इस प्रकार धारा-125 प्रकृतिशः धर्मनिरपेक्ष है [ मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम 1985; S.C.]

अध्याय-25 के अन्तर्गत प्रथम वर्ग, मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो स्वयं भरण-पोषण करने में असमर्थ हो तथा ऐसे विपक्षी के साथ, जो पर्याप्त साधन सम्पन्न है, धारा-125 (1) के खण्ड (a) या (b) या (c) या (d) में वर्णित संबंध रखता हो, उस विपक्षी के विरुद्ध भरण-पोषण का वाद लाया जा सकेगा और वह मजिस्ट्रेट, ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के पक्ष में उचित रूपये प्रदान किया जाना निर्देशित कर सकेगा।

bharan poshan bhatta के लाभार्थी

भरण-पोषण का लाभार्थी कौन हो सकता है? (धारा-125 (1))

धारा-125 (1) (a) से (d) में वर्णित व्यक्ति भरण-पोषण की माँग कर सकते हैं। भरण-पोषण प्राप्त करने हेतु आवेदक को निम्रलिखित बातों का अभिवचन एवं स्थापन करना होगा-

(1) यह कि आवेदक तथा विपक्षी के मध्य, धारा-125 (1) (a) या (b) या (c) या (d) में वर्णित कोई पारिवारिक

संबंध है।

(2) यह कि आवेदक अपना भरण-पोषण करने में समर्थ है।

(3) यह कि विपक्षी पर्याप्त साधन सम्पन्न है। यहाँ पर्याप्त साधन से तात्पर्य श्रम करने की क्षमता से भी है (बसन्त • कुमारी बनाम शरद कुमार, 1982, कटक)

(4) यह कि विपक्षी ले भरण-पोषण देने से इंकार कर दिया है या उसमें उपेक्षा बरत रहा है।

धारा-125 (1) (a) के अन्तर्गत भरण-पोषण की माँग पत्नी द्वारा की जा सकती है। ‘पली’ शुब्द व्यापक अर्थ में प्रयुक्त है। इसकी परिधि में ऐसी तलाकशुदा पत्नी भी, जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है, शामिल है। पत्नी वयस्क या अवयस्क भी हो सकती

धारा-125 (1) (b) के अन्तर्गत, यदि सन्तान अवयस्क हैं, तो भरण-पोषण की माँग कर सकती हैं। यहाँ यह महत्वहीन है कि ऐसी एक संतान विवाहित है या अविवाहित अथवा धर्मज हों या अधर्मज। परन्तु यदि कोई अवयस्क संतान पुत्री है और विवाहित है तो वह अपने पिता से तभी भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है जबकि उसका पति उसका भरण-पोषण करने में समर्थ न हो।

कोई ऐसी धर्मज या अधर्मज वयस्क संतान, जो विवाहित नहीं है, तथा जो किसी शारीरिक असमानता या क्षति के कारण स्वयं, भरण-पोषण करने में असमर्थ है, भरण-पोषण की माँग कर सकती है। यह माँग वह धारा-125 (1) (c) के अन्तर्गत करने की हकदार है।

धारा-125 (1) (d) के अन्तर्गत माता-पिता भरण-पोषण की माँग कर सकते हैं। कीर्तिकान्त डी. वादोरिया बनाम गुजरात राज्य (1996) के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि धारा-125 (1) (d) में प्रयुक्त ‘माता’ अभिव्यक्ति का तात्पर्य केवल नैसर्गिक माता से है और सौतेली माता यहाँ सम्मिलित नहीं है परन्तु ऐसी निःसंतान सौतेली माता, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो को इस धारा के अधीन भरण-पोषण दिलाया जा सकता है। दत्तक माता- पिता भरण-पोषण प्राप्त करने के हकदार होंगे। जहाँ ऐसी संतानें एकाधिक हैं वहाँ माता-पिता उनमें से किसी एक अथवा कई के विरुद्ध उपचार प्राप्त कर सकते हैं (संयुक्त समिति प्रतिवेदन)।

ऐसा पिता जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, अपनी विवाहित या अविवाहित पुत्री से, जो पर्याप्त साधनों वाली हो, भरण-पोषण प्राप्त कर सकता है (Vijay Manohar Arbath vs. K.R. Sawai 1987, S.C)

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सक्षम न्यायालय (competent court)

धारा-125 (1) के अन्तर्गत भरण-पोषण हेतु आवेदन प्रथम श्रेणी दण्डाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा। अध्याय-IX में न्यायिक मजिस्ट्रेट को आवश्यक शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। यद्यपि यह विवाद दीवानी प्रकृति का है, तथापि न्यायिक दण्डाधिकारी को ऐसी शक्तियाँ, न्याय हित में प्रदत्त की गयी हैं। इससे ऐसा उपचार द्रुत गति से व कम खर्च से प्राप्त किया जा सकता है, जो इस उपबन्ध के लाभार्थी हेत अति आवश्यक होता है।

bharan poshan bhatta (DHARA-125)-उपचार

धारा-125 (1) के अन्तर्गत, प्रथम श्रेणी दण्डाधिकारी आवेदक व्यक्ति के पक्ष में युक्तियुक्त धनराशि प्रति माह की दर से भुगतान का आदेश दे सकता है।

धारा-125 (1) के परन्तुक के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट किसी अवयस्क विवाहितों बालिका के भरण-पोषण का निर्देश उसके पिता को दे सकता है। यदि ऐसी बालिका स्वयं भरण-पोषण (अर्थात पत्ति द्वारा उसका भरण-पोषण) किये जाने में असमर्थ है। यह आदेश उक्त बालिका के वयस्क होने तक के लिए हो सकता है। प्रथम परन्तुक।

धारा-125 (1) के अन्तर्गत आदेशित भरण-पोषण आदेश की तिथ से भुगतान योग्य होगा (धारा-125 (2))1 मजिस्ट्रेट उचित मामले में ऐसा भुगतान आवेदन की तिथि से किये जाने का भी निर्देश दे सकता है।

मजिस्ट्रेट यदि उचित समझे, मामले की सुनवाई के दौरान अन्तरिम भरण-पोषण का भी आदेश दे सकता है [ सावित्री बनाम गोविंद सिंह रावत, 1985 S.C.] द्वितीय परन्तुक ।

पत्नी का हकदारिणी न रह जाना

पत्नी का हकदारिणी न रह जाना धारा-125 (4)

निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर पत्नी भरण-पोषण का अधिकर खो देगी-

(i) जबकि पत्नी जारता में रह रही हो; या

(ii) जबकि वह पर्याप्त कारण के विना, पत्ति के साथ रहने से इन्कार करती है; या

(iii) जबकि पति-पत्नी पारस्परिक सहमति से साथ रह रहे हैं।

पति द्वारा साथ रहने का प्रस्ताव करने पर, पत्नी द्वारा भरण-पोषण की माँग

पति द्वारा साथ रहने का प्रस्ताव करने पर, पत्नी द्वारा भरण-पोषण की माँग धारा-125 (3), परन्तुक द्वितीय

पत्नी यदि पति के इस प्रस्ताव को, कि यदि वह (पत्नी) उसके (पति के) साथ रहे तो वह भरण-पोषण करेगा, अस्वीकार कर देती है, तो भी वह धारा-125 के अन्तर्गत भरण-पोषण प्राप्त कर सकेगी, बशर्ते कि ऐसा इन्कार युक्तियुक्त कारणों से करे।

युक्तियुक्त या न्यायोचित कारण तथ्य एवं परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पत्नी द्वारा बताया कारण पर्याप्त है या नहीं, यह

मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होगा। धारा-125 (3) स्पष्टीकरण के अनुसार, जहाँ पति किसी अन्य महिला से विवाह करने की

संविदा कर चुका हो या एक उपपली या रखैल रखता हो, वहाँ पत्नी का उसके साथ रहने से इंकार करना, युक्तियुक्त कारणों पर आधारित माना जायेगा। अतः ऐसे में वह पृथक रहते हुए तथा पति के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देने के बावजूद भी भरण-पोषण प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी। पति की नपुंसकता उचित कारण, वाद सिराज मु. खाँ बनाम हफीजुन्निसा, 1981, S.C.

bharan poshan bhatta के आदेश का अपालन

भरण-पोषण के आदेश का अपालन (धारा-125 (3))

जबकि कोई व्यक्ति बिना पर्याप्त कारण के, भरण-पोषण के आदेश का अनुपालन करने में विफल रहता है, तब दण्डाधिकारी, ऐसे प्रत्येक भंग के लिए, राशि की वसूली का वारण्ट जारी कर सकता है। वारण्ट के निष्पादन के पश्वात्, मजिस्ट्रेट दोषी व्यक्ति को कारावासित करने का आदेश दे सकता है। ऐसा कारावास अधिकतम एक माह का होगा तथा यदि कारावास के दौरान ही वह व्यक्ति राशि का भुगतान कर देता है तो उसे उसी समय रिहा कर दिया जायेगा।

bharan poshan कार्यवाही की प्रक्रिया (धारा-126)

bharan poshan कार्यवाही की प्रक्रिया (धारा-126)

धारा-126 में, धारा-125 के अन्तर्गत भरण-पोषण की कार्यवाही की प्रक्रिया प्रावधानित है। इसके अन्तर्गत भरण-पोषण के लिए आवेदन पर सुनवाई, प्रथम वर्ग के दण्डाधिकारी द्वारा विचरण किये जाने का प्रावधान किये जाने के साथ निम्नलिखित प्रक्रियात्मक उपबन्ध भी किये गये हैं-

आवेदन का स्थान (Forum)

आवेदन का स्थान (Forum) धारा-126 (1)

धारा-126 (1) के अन्तर्गत भरण-पोषण हेतु आवेदन निम्नलिखित किसी भी स्थान पर (जनपद में प्रस्तुत किया जा सकता है

(a) जहाँ विपक्षी है; या

(b) जहाँ विपक्षी, या उसकी पत्नी निवास करती है; या

(c) जहाँ वह अन्तिम, यथास्थिति, अपनी पत्नी के साथ या अधर्मज सन्तान की माता के साथ निवास किया है।

S.S. Ganguli v. State, 1985, Cal. में धारण किया गया कि माता-पिता के निवास (जनपद) स्थान में कार्यवाही का संचालन नहीं किया जा सकता है। अध्याय IX की कार्यवाही में, अध्याय XIII के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

साक्ष्य का अभिलेखन

साक्ष्य का अभिलेखन – धारा-126 (2), सपठित धारा-274 असक्षम न्यायशबोलकर

धारा-125 की कार्यवाही में सभी साक्ष्य विपक्षी की उपस्थिति में लिये जायेंगे और अभिलिखित किये जायेंगे। यदि विपक्षी को वैयक्तिक उपस्थिति से अभिमुक्ति प्राप्त हो गयी है, तो समस्त साक्ष्य उसके अधिवक्ता की उपस्थिति में ही लिये जायेंगे। साक्ष्य का अभिलेख समन मामलों में नियत ढंग से किये जायेंगे, जो धारा-274, दं.प्र.सं. में उपबन्धित किये गये हैं।

एकपक्षीय आदेश

एकपक्षीय आदेश धारा-126 (2) का परन्तुक

यदि मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो गया हो, कि यह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध भरण-पोषण का आदेश प्रस्तावित है, जानबूझकर या कपटपूर्वक, न्यायालय में उपस्थित होने में उपेक्षा कर रहा है या समन की तामील से बच रहा है, तो वह (मजिस्ट्रेट) सुनवाई के पश्चात एकपक्षीय आदेश पारित कर सकता है।

यदि ऐसा आदेश पारित होने के पश्चात, संबंधित आदेश की तिथि से तीन माह के भीतर, आवेदन पत्र प्रस्तुत करता है तथा एकपक्षीय आदेश के अपास्त किये जाने का उचित कारण दर्शाता है, तो न्यायालय ऐसे आदेश को अपास्त कर सकता है। ऐसा अपास्तीकरण उचित शर्तों के अधीन होगा। आवेदक को यह भी आदेश दिया जा सकता है कि वह पक्षकार को व्यय का भुगतान करे।

व्यय (Cost)

व्यय (Cost) धारा-126 (3)

धारा-125 के अन्तर्गत, आवेदन पर विचारण करने वाले न्यायालय को यह शक्ति भी प्राप्त है कि वह वाद व्यय के संबंध में उचित आदेश पारित करे।

भरण-पोषण भत्ते में परिवर्तन

भरण-पोषण भत्ते में परिवर्तन (धारा-127)

भरण-पोषण के निर्धारित भत्ते में परिवर्तन के आशय से इस संहिता में धारा-127 का प्रावधान किया गया है। इस उपबन्ध का आशय है कि एक बार न्यायालय द्वारा भडो का निर्धारण हो जाने के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन होने के कारण, उस भत्ते में किसी पक्षकार द्वारा परिवर्तन कराया जा सके।

धारा-127 (1) के अन्तर्गत परिस्थितियों में परिवर्तन के आधार पर, जिस व्यक्ति के पक्ष में भुगतान हो रहा है, अथवा जो भुगतान कर रहा है, भत्ते की राशि में परिवर्तन करने हेतु आवेदन कर सकते हैं। इस प्रकार इस धारा का लाभ, परिस्थितियों के अनुसार, दोनों ही पक्षकार उठा सकते हैं।

धारा-127 (2) के अन्तर्गत भी, धारा-125 (1) में पारित भरण-पोषण का आदेश परिवर्तित या निरस्त किया जा सकता है। धारा के अन्तर्गत निरसन या परिवर्तन, सिविल न्यायालय के निर्णय के परिणामस्वरूप किया जा सकता है।

धारा-127 (3) के अन्तर्गत उन आधारों का उल्लेख किया गया है, जिनके मौजूद होने पर, किसी पत्नी (तलाकशुदा) के पक्ष में, धारा-125 (1) (a) के अन्तर्गत पारित आदेश को निरसित कराया जा सकेगा। धारा-127 (3) में वर्णित वे आधार निम्नलिखित हैं –

(क) यदि प्रश्नगत तलाकशुदा पत्नी, पुनर्विवाह कर लेती है; या

(ख) तलाकशुदा पत्नी द्वारा निजी या रूढ़िजन्य विधि के अधीन भुगतान योग्य धन की प्राप्ति; या

ग) ऐसी तलाकशुदा पत्नी द्वारा, तलाक के पश्चात भरण-पोषण के अधिकार का अभ्यर्पण किया जाना।

प्रश्न – क) किन आधारों पर पत्नी भरण-पोषण के अधिकार से वंचित होगी ?

(ख) किन आधारों पर पत्नी के पक्ष में पारित भरण-पोषण का आदेश निरसित किया जा सकता है?

उत्तर-

(क) धारा-125 (4)

जबकि कोई पत्नी भरण-पोषण के लिए आवेदन करती है, निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर उसे भरण-पोषण से वंचित कर दिया जायेगा, जो धारा-125 (4) में वर्णित हैं-

(i) उक्त पत्नी जारता में रह रही हो उपधारा (4) में वर्णित इस आधार की भाषा से स्पष्ट है कि यदि पत्नी मात्र एक या दो बार जारता कर्म कर दी हो तो उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जायेगा; या

(ii) वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती हो; या

(iii) पति व पत्नी पारस्परिक सहमति से पृथक रह रहे हों।

(ख) धारायें-125 (5), 127 (1) (2) एवं (3)

जबकि किसी पत्नी को, धारा-125 (1) (a) के अन्तर्गत भरण-पोषण दिये जाने का आदेश पारित हो, तो ऐसा आदेश निम्नलिखित आधारों पर निरस्त कर दिया जायेगा –

(1) धारा-125 (4) में उल्लिखित किसी भी कारण पर;

(2) धारा-127 (1), (2) या (3) में वर्णित किसी भी आधार पर।

भरण-पोषण के आदेश का प्रवर्तन

भरण-पोषण के आदेश का प्रवर्तन (धारा-128)

भरण-पोषण का आदेश, धारा-128 के अन्तर्गत, प्रवर्तित कराया जा सकता है। धारा-128 के अनुसार आवेदक या उसके सरंक्षक को भरण-पोषण के आदेश की प्रति निःशुल्क प्रदान की जायेगी।

ऐसे आदेश का प्रवर्तन किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा, ऐसे किसी भी स्थान पर, जहाँ विपक्षी विद्यमान हो, किया जा सकता है।

आदेश का प्रवर्तन करने से पूर्व, मजिस्ट्रेट निम्नलिखित दो बातों का ध्यान रखेगा-

(a) उस व्यक्ति की पहचान, जिसके विरुद्ध आदेश पारित किया गया है, तथा

(b) भत्ता का भुगतान न होने का तथ्य।

मुस्लिम महिला का भरण-पोषण का अधिकार

‘मुस्लिम महिला के भरण-पोषण का अधिकार’ को निम्रलिखित उपशीर्षकों के अन्तर्गत व्याख्यायित किया गया है-

मुस्लिम वैयक्तिक विधि के अन्तर्गत अधिकार

मुस्लिम वैयक्तिक विधि के अन्तर्गत अधिकार-

मुस्लिम महिला का स्वीय विधि के अन्तर्गत, संपूर्ण जीवन काल तक अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। इस विधि के अन्तर्गत एक मुस्लिम पति अपनी पत्नी (पत्नियों) का भरण-पोषण करने के लिए आबद्ध है। यह आबद्धता वैधानिक है। ऐसा पति किसी भी बहाने से इस दायित्व से मुफ्त नहीं हो सकता है।

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी का अधिकार

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी का अधिकार-

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत तलाकशुदा पत्नी केवल इद्दत की अवधि तक ही अपने पति के विरुद्ध भरण-पोषण का अधिकार रखती है। इस प्रकार यह बहुत सीमित है। इहत काल के पश्चात् वह पुनर्विवाह करने के लिए स्वतंत्र हो जाती है। अतः इद्दत काल के समापन के बाद मुस्लिम पति अपनी तलाकशुदा पत्नी के भरण-पोषण का दायाँ नहीं रह जाता।

इद्दत काल वह अवधि है, जो तलाक के पश्चात् शुरू होती है। सामान्यतः इद्दत काल तीन माह का होता है। यदि तलाक के समय वह महिला गर्भवती हो तो यह अवधि बच्चे के जन्म लेने तक होती है। इस प्रतिबंध का उद्देश्य संतान की धर्मजता का निर्धारण करना है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी के भरण-पोषण का अधिकार

दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी के भरण-पोषण का अधिकार-

भारतीय दंड संहिता एक धर्मनिरपेक्ष अधिनियम है। धारा-125 (1) (a) के अन्तर्गत पत्नी अपने पति के विरुद्ध भरण-पोषण का अधिकार रखती है। धारा-125 (1) का स्पष्टीकरण ‘पत्नी’ शब्द का क्षेत्र विस्तार करता है। इसके अनुसार –

“पत्नी में समाहित है वह महिला जिसे, उसके पति ने तलाक दे दिया हो, या जिसने अपने पति से तलाक ले लिया हो, किन्तु पुनर्विवाह न किया हो।”

धारा-125 (1) (a), सपठित स्पष्टीकरण से यह स्पष्ट है कि पोषण के प्रयोजन हेतु तलाकशुदा पत्नी, पत्नी समझी जायेगी, बशर्ते उसने पुनर्विवाह न किया हो।

दण्ड प्रक्रिया संहिता एक पंथ-निरपेक्ष विधि

चूँकि दण्ड प्रक्रिया संहिता एक पंथ-निरपेक्ष विधि है, अतः धारा-125 (1) (a) का लाभ सभी पत्नियों को होगा, चाहे वे किसी भी धर्म में आस्थावान हों। शाहबानो बेगम, 1985 के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया कि मुस्लिम पत्नी सहित सभी तलाकशुदा पत्नी, अपने पति के विरुद्ध धारा-125 (1) (a) के अन्तर्गत भरण-पोषण के दावे का अधिकार रखती हैं, जब तककि वह पुनर्विवाह न कर ले।

शाहबानो प्रकरण में दिये गये निर्णय का, प्रगतिशील मुस्लिमों ने विशेषकर महिला संगठनों ने स्वागत किया, जबकि कट्टरपंथी मुस्लिमों के भारी विरोध को देखते हुए संसद ने 1986 ई. में ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम’ पारित किया।

डेनियल लतीफी, 2001 के बाद में S.C. ने इस अधिनियम को नकारते हुए उक्त निर्णय को उचित ठहराया।

‘ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986

‘ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986’ के अन्तर्गत तलाकशुदा मुस्लिम महिला के भरण-पोषण का अधिकार-

‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986’, जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर शेष भारत पर 17 मई 1986 से लागू है।

ऐसी मुस्लिम महिला, जिसका विवाह मुस्लिम विधि के प्रावधानानुसार हुआ हो तथा उसे तलाक दे दिया गया हो या उसने तलाक ले लिया हो, के भरण-पोषण संबंधी अधिकार इस विधि द्वारा प्रशासित है।

इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि इद्दत काल में ऐसी तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति से युक्तियुक्त तथा न्यायपूर्ण भरण-पोषण की राशि प्राप्त करेगी तथा यदि उसके साथ पूर्व या पश्चात जन्मी संतान रह रही हो तो पूर्व पत्ति ऐसी संतान के लिए भी दो वर्षों तक भरण-पोषण की व्यवस्था करेगा। धारा-3 (1)

यदि पर्याप्त साधन सम्पन्न होते हुए भी ऐसा पति इद्दत काल में भरण-पोषण करने से इंकार करता है या उपेक्षा बरतता है तो महिला धारा-125 (1) (a), भा.दं.सं. के अन्तर्गत आवेदन कर सकेगी।

इद्दत काल समाप्त हो जाने पर यदि तलाकशुदा मुस्लिम महिला पुनर्विवाह न करती है तथा वह पर्याप्त साधन संपन्न भी नहीं हो तो मजिस्ट्रेट उसके उत्तराधिकार सम्बन्धियों को उसका भरण-पोषण करने हेतु आदेशित कर सकता है। ये उत्तराधिकारी अपने

संभावित अंश के अनुपात में भरण-पोषण में योगदान देंगे तथा यह दायित्व मजिस्ट्रेट द्वारा नियत अवधि तक बना रहेगा। यदि उस महिला को संतान या संतानें उसका भरण-पोषण करने में समर्थ हों तो यह दायित्व प्राथमिक रूप से उन्हीं पर डाला जायेगा। यदि संतान या संतानें असमर्थ हों तो भरण-पोषण का दायित्व माता-पिता पर डाला जा सकता है।

यदि माता-पिता भी भरण-पोषण करने में असमर्थ हों तो ऐसे किसी अन्य संबंधी को जो मजिस्ट्रेट की दृष्टि में, समर्थ हों, आदेशित किया जा सकता है।

यदि उपरोक्त सभी व्यवस्थाओं के तहत भी भरण-पोषण संभव न हो, तो यह दायित्व उस क्षेत्र के वक्फ बोर्ड पर होगा (धारा-1)

धारा-125 का विकल्प

धारा-125 का विकल्प (धारा-3, M.W.(P.R.D.) Act, 1986)

अधिनियम की धारा-5 के अनुसार भरण-पोषण हेतु प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र के प्रथम सुनवाई के दिन तलाकशुदा महिला तथा उसका पूर्व पति, यदि चाहे तो शपथ-पत्र द्वारा या अन्यथा यह मंतव्य व्यात कर सकता है कि वे अपना वाद धारा-125 Cr.P.C. के अन्तर्गत तय कराना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में भरण-पोषण का मामला अध्याय-9, Cr.P.C. के अधीन तय होगा। स्पष्ट है कि धारा-125-128 के प्रावधान तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए अप्रासंगिक नहीं हुए हैं।

Abid Ali vs. Billkis, 1992, AIL. में धारण किया गया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम की धारा-5 व्यावहारिक नहीं है। इस बात की संभावना लगभग शून्य है कि तलाक देने वाला पति, भा.दं.सं. की धारा-125 (1) (a) के तहत भरण-पोषण देने के लिए सहमति व्यक्त करेगा।

Bharan Poshan के लम्बित वाद

अधिनियम की धारा-7 के अनुसार दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-125 या 127 के अन्तर्गत लम्बित प्रार्थना-पत्र मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 के अन्तर्गत निपटाये जायेंगे (बशर्ते कि पक्षकारों ने इस अधिनियम की धारा-5 के अन्तर्गत यह घोषणा न की हो कि वे संहिता के अंतर्गत ही अपना मामला निपटाना चाहते हैं)।

मुस्लिम महिला (विवाह-विच्छेद अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम भूतलक्षी नहीं है। अतः नये अधिनियम के पारित होने से पूर्व संहिता की धारा-125 (1) (a) के अन्तर्गत पारित आदेश यथावत् बने रहेंगे। ऐसे मामलों में भरण-पोषण धारा-125 (1) (a) के अन्तर्गत पारित आदेश से ही मिलता रहेगा [A,A.Abadulla vs. A.B. Mahamunna Sayad Bhai-1988, Guj.; Indarish Ali vs. Reshama Khatuna-1989, Guwahati.]

Shafat Ahabad vs. Farmida Sardar, 1990, Allahabad में धारण किया गया कि ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम-1986’ में दण्ड प्रक्रिया संहिता का अपवार्जन नहीं किया गया है। अतः यदि इस अधिनियम की धारा- 3 के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट ने कोई आदेश पारित किया हो तो उस आदेश के विरुद्ध दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत पुनरीक्षण प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया जा सकता है।

भरण पोषण में कौन सी धारा लगती है?

जिन बच्चों को अपने पिता का पता न हो अर्थात उनके माता-पिता द्वारा विधिमान्य विवाह न किया गया हो परन्तु इस बात की जानकारी हो कि उनका पिता कौन था जिससे उसकी मां ने जन्म दिया था तो ऐसे अवैध बच्चे भी अपने भरण-पोषण हेतु इस अधिनियम की धारा 125 में मांग कर सकते हैं ।

पत्नी के लिए भरण पोषण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या है?

वसूली कार्यवाही के तहत लेनदारों के अधिकारों पर एक व्यक्ति की पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के अधिकार को वरीयता देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि भरण-पोषण का अधिकार मौलिक अधिकार के बराबर है।

क्या बहू ससुर से भरण पोषण का दावा कर सकती?

ससुर के हाथों में संपत्ति होना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है और धारा 19(1) से उत्पन्न दायित्व हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19(2) से स्वतंत्र है. धारा 19 के तहत, विधवा बहू अपने ससुर की स्व-अर्जित संपत्ति के खिलाफ भी भरण -पोषण का दावा करने की हकदार है।

हिंदू पत्नी अपने पति से अलग निवास और भरण पोषण की मांग कब कर सकती है?

अधिनियम की धारा 18 के अनुसार हिन्दू पत्नी चाहे उसका विवाह अधिनियम के प्रारम्भ होने के पूर्व हुआ हो अथवा उसके पश्चात इस धारा के उपबन्धों के अधीन रहते हुए अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिये हकदार होगी।

क्या बेरोजगार पति भरण पोषण दे सकता है?

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत, यहां तक कि एक पति भी अपनी पत्नी से गुजारा भत्ता का दावा कर सकता है यदि उसकी आय कम है या बेरोजगार है। हालाँकि, यदि वह व्यक्ति काम करने में सक्षम व्यक्ति है और केवल भरण-पोषण से बचने के लिए काम नहीं कर रहा है, तो अदालत उसे भरण-पोषण से वंचित कर सकती है।

पत्नी मायके से ना आए तो क्या करें?

पत्नी मायके से ना आए तो क्या करें? अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए आप हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत वैवाहिक अधिकार की बहाली का मुकदमा पारिवारिक न्यायालय में दाखिल करिए यदि आपकी पत्नी को उसके जीजा ने जबरदस्ती घर पर रखा हुआ है और वह आना चाहती है तो आप हाई कोर्ट में एक रिट याचिका डाल सकते है।

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