प्रिय पाठकों, आप सभी का स्वागत है। इस लेख के माध्यम से High Court Article के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। इस ब्लॉग में High Court Article, का परिचय, इसके इतिहास, दो या दो से अधिक राज्यों के लिए सामान्य उच्च न्यायालय, संयोजन,न्यायाधीशों की नियुक्ति,न्यायाधीशों की योग्यता, शपथ या पुष्टि, न्यायाधीशों का स्थानांतरण, वेतन या भत्ते, न्यायाधीशों का कार्यकाल, न्यायाधीशों को हटाना, उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार, शक्तियाँ, विशेष उल्लेख, राजस्थान उच्च न्यायालय से संबंधित उपबंधो के बारे में step by step सविस्तार से चर्चा करेंगे।

High Court Article
भारत के संविधान के भाग VI (राज्य) में अनुच्छेद 214 से 231 तक बताया गया।
संबंधित अनुच्छेद
अनुच्छेद संख्या | प्रावधान का शीर्षक |
अनुच्छेद 214 | राज्यों के लिए उच्च न्यायालय। |
अनुच्छेद 215 | उच्च न्यायालय अभिलेखों के न्यायालय के रूप में। |
अनुच्छेद 216 | उच्च न्यायालय का गठन। |
अनुच्छेद 217 | उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के लिए नियुक्ति तथा शर्तें। |
अनुच्छेद 218 | उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ प्रावधानों को उच्च न्यायालयों में लागू करना। |
अनुच्छेद 219 | उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान। |
अनुच्छेद 220 | स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात विधि-व्यवसाय पर निर्बंधन। |
अनुच्छेद 221 | न्यायाधीशों के वेतन आदि। |
अनुच्छेद 222 | किसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण। |
अनुच्छेद 223 | कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति। |
अनुच्छेद 224 | अपर और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति। |
अनुच्छेद 225 | उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार। |
अनुच्छेद 226 | कतिपय याचिकाएँ जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति। |
अनुच्छेद 227 | सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति। |
अनुच्छेद 228 | कुछ मामलों का उच्च न्यायालय को अंतरण। |
अनुच्छेद 229 | उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक तथा व्यय। |
अनुच्छेद 230 | उच्च न्यायालयों की अधिकारिता का संघ राज्य क्षेत्रों पर विस्तार। |
अनुच्छेद 231 | 2 या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना करना। |
- राज्य का सर्वोच्च न्यायिक न्यायालय है।
- उच्चतम न्यायालय के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा न्यायिक न्यायालय है।
- कुल: भारत में 25 उच्च न्यायालय है।
- या दो से 7वां संशोधन अधिनियम, 1956 संसद को दो अधिक राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक सामान्य उच्च न्यायालय स्थापित करने के लिए अधिकृत किया गया।
- उच्च न्यायालय का प्रादेशिक क्षेत्राधिकार राज्य के क्षेत्र के साथ समाप्त होता है।
- संसद के पास उच्च न्यायालय के न्यायिक क्षेत्र की शक्ति है जो किसी संघ राज्य क्षेत्र में कर सकती है तथा किसी संघ राज्य क्षेत्र को एक उच्च न्यायालय के न्यायिक क्षेत्र से बहार कर सकती है।
इतिहास
स्थापित- कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास में भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1862 के तहत।
नवीनतम- तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में हाल ही में उच्च न्यायालय स्थापित किया गया है। इसकी स्थापना 1 जनवरी, 2019 को हुई थी।
दो या दो से अधिक राज्यों के लिए सामान्य उच्च न्यायालय
- बॉम्बे उच्च न्यायालय – महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव
- गुवाहाटी उच्च न्यायालय- असम, नागालैंड,मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश
- पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय- पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़
- कलकत्ता उच्च न्यायालय- पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
- तमिलनाडु उच्च न्यायालय – तमिलनाडु, पुदुचेरी
- केरत उच्च न्यायालय- केरल, लक्षद्वीप
read more
संयोजन
- अनुच्छेद 216- एक मुख्य न्यायाधीश + राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अन्य न्यायाधीश।
- सदस्य संख्या- इसे राष्ट्रपति के विवेक पर छोड दिया गया है।
नियुक्ति
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद राष्ट्रपति द्वारा कि जाती है।
- अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा कि जाती है।
- दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक सामान्य उच्च न्यायालय के मामले में राष्ट्रपति द्वारा सभी संबंधित राज्यों के राज्यपालों से परामर्श किया जाता है।
- तीसरे न्यायाधीश मामले (1998)– उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्टतम न्यायाधीश से परामर्श लेनी चाहिए।
- उच्च न्यायालय कोलेजियम– इसके मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में उस अदालत के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश।
- •उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिए अनुशंसित नाम मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अनुमोदन के बाद ही सरकार तक पहुँचते हैं।
न्यायाधीशों की योग्यता
- भारत का नागरिक हो।
- भारत के न्यायिक कार्यालय में 10 वर्ष का अनुभव हो।
- उच्च न्यायालय में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए संविधान द्वारा कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है।
शपथ या पुष्टि
- राज्य के राज्यपाल या इस कार्य के लिए उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के सामने शपथ या प्रतिज्ञान करना होता है।
न्यायाधीशों का स्थानांतरण
- अनुच्छेद 222 (1): मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद राष्ट्रपति एक न्यायाधीश को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है।
वेतन या भत्ते
- संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन राज्य की संचित निधि पर भारित ।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन भारत की संचित निधि पर भारित।
- उनकी नियुक्ति के बाद किसी वित्तीय आपात स्थिति को छोड़कर लाभकारी के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
न्यायाधीशों का कार्यकाल
- संविधान द्वारा कोई निश्चित कार्यकाल प्रदान नहीं किया गया है।
- 62 वर्ष की आयु तक पद पर रहता है (उनकी आयु के संबंध में कोई भी प्रश्न राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद तय किया जा जाता है और राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होता है।
- राष्ट्रपति को त्यागपत्र भेज सकता है।
न्यायाधीशों को हटाना
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को राष्ट्रपति आदेश से पद से हटाया जा सकता है।
- राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश संसद द्वारा उसी सत्र पारित प्रस्ताव के आधार पर ही जारी कर सकता है।
- प्रस्ताव को विशेष बहुमत के साथ संसद के प्रत्येक सदन का समर्थन (एस प्रस्ताव को उस सदन के कुल सदस्यों के बहुमत का समर्थन और उस सदन में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई का समर्थन) मिलना आवश्यक है।
- हटाने के आधारः
- सिद्ध कदाचार
- अक्षमता।
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी प्रक्रिया और आधारों पर हटाया जा सकता है।
- न्यायाधीश जाँच अधिनियम (1968) में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाने के निम्नलिखित नियम हैं –
- 100 सदस्यों (लोकसभा) अथवा 50 सदस्यों (राज्यसभा) के हस्ताक्षरित हटाने का प्रस्ताव अध्यक्ष/सभापति को सौंपना होगा।
- अध्यक्ष/सभापति को स्वीकृत अस्वीकृत कर सकता है।
- यदि प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो अध्यक्ष सभापति आरोपों की जाँच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करेगा।
- समिति में (1)उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या कोई न्यायाधीश (ll) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और (lll) एक प्रख्यात न्यायविद होने चाहिए।
- यदि समिति यह पाती है कि न्यायधी कदाचार का दोषी है या अयोग्य है तो सदन प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।
- संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पास होने के बाद न्यायाधीश को हटाने के लिए इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
- अंतत: न्यायाधीश को हटाने के लिए राष्ट्रपति आदेश पारित कर देते हैं।
- अब तक उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया है।
उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार
मूल क्षेत्राधिकार
- विवादों की प्रथमसुनवाई (आवेदक सीधे उच्च न्यायालय में जा सकते हैं। सीधे होगी, न की अपील के माध्यम से करने का अधिकार है।
- राज्यविधान सभा विवाह मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन और अन्य अदालतों से स्थानांतरण मामलों से संबंधित मामलों के लिए लागू होता है।
2. रिट क्षेत्राधिकार
- अनुच्छेद 226 उच्चन्यायालय के पास मूल अधिकारों को लागू करने और किसी अन्य उद्देश्य के लिए’ (एक सामान्य कानूनी अधिकार का प्रवर्तन) के लिए रिट जारी करने की शक्तिहै।
- अनन्य न होकर उच्चतम न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के साथ समवर्ती है (अनुच्छेद 32)।
- पीड़ित पक्ष का अधिकार है कि वह या तो उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के पास सीधे जाने का विकल्प है।
3. अपीलीय क्षेत्राधिकार
- राज्यक्षेत्र के तहत आने वाले अधीनस्थ न्यायालयों के आदेशों के विरुद्ध अपील की सुनवाई होती है।
- दीवानी मामले- इसने जिला न्यायालय, व अन्य अधीनस्थ न्यायालय के आदेश और निर्णय शामिल हैं।
- आपराधिक मामले- इसमें सत्र न्यायालय और अतिरिक्तसत्रन्यायालय के निर्णय और आदेश शामिल हैं।
- सत्र अदालत या अतिरिक्त सत्र अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को निष्पादित करने से पहले उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए, चाहे अपील की गई हो या नहीं हो।
4. पर्यवेक्षीय क्षेत्राधिकार
- अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र (सैन्य न्यायालयों या न्यायाधिकरणों को छोड़कर) में कार्यरत होता और सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों अधीक्षण शामिल है।
- स्वत संज्ञान ले सकता किसी पक्ष द्वारा प्राथर्ना पत्र आवश्यक नहीं है।
5. अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण
- जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, तैनाती और पदोन्नति मामलों में और राज्य की न्यायिक सेवा (जिला न्यायाधीशों के अला वा) में व्यक्तियों की नियुक्ति के मामतों में राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय से परामर्श किया जाता है।
- अधीनस्थ न्यायालय में लंबित मामले को वापस लेने की शक्ति यदि इसमें कानून का एक महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है जिसके लिए संवैधानिक व्याख्या की आवश्यकता हो।
- अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी अधीनस्थ न्यायालयों पर बाध्यता होती है
शक्तियाँ
अभिलेख न्यायालय (अनुच्छेद 215)
- उच्च न्यायालय के सभी निर्णय, कार्यवाहियों और कार्यस्थायीस्मृति के लिए दर्ज किए जाते हैं।
- साक्ष्य तौर पर रखा जाता है और अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष पेश किए जाने पर सवाल नहीं किये जा सकते ।
- कानूनी परंपराओ और कानूनी संदर्भों के रूप में माना जाता है।
- न्यायालय की अवमानना पर साधारण कारावास या आर्थिक दंड या दोनों प्रकार के दंड देने का अधिकार है।
न्यायिक समीक्षा
- केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के विधायी और कार्यकारी कार्यों की संवैधानिकता के परीक्षण के लिए है।
- यदि संविधान का उल्लंघन करने वाला है तो उच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक और सामान्य (शून्य) घोषित किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता
- नियुक्ति का तरीका– राष्ट्रपति द्वारा न्यायपालिका के सदस्यों के परामर्श से ही नियुक्त किया जाता है।
- कार्यकाल की सुरक्षा- राष्ट्रपति द्वारा केवल संविधान में उल्लिखित तरीके और आधार पर पद से हटाया जाता है।
- निश्चित सेवा शर्ते- वित्तीय आपात स्थिति को छोड़कर उनकी नियुक्ति के बाद इनमे कमी नहीं की जा सकती।
- राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय इस प्रकार राज्य विधायिका द्वारा गैर मतदान योग्य है। (केवल चर्चा की जा सकती है)
- न्यायाधीशों के आचरण पर संसद या राज्यविधानमंडल में चर्चा नहीं की जा सकती, जब तक कि महाभियोग प्रस्ताव विचाराधीन न किया गया हो।
- किसी उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त स्थायी न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय और अन्य उच्च न्यायलयों को छोड़कर भारत में किसी भी अदालत में या किसी भी प्राधिकरण के समक्ष याचना करने या कार्य करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है।
- उच्च न्यायालय किसी भी व्यक्ति को अपनी अवमानना के लिए दंड दे सकता है।
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय के अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं और उनकी सेवा की शर्तों को भी निर्धारित करते हैं।
- संसद और राज्य विधायिका उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करते हैं लेकिन उच्द न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और शक्तियों को कम करने के लिए अधिकृत नहीं होते हैं।
- कार्यपालिका को अलग रखने के लिए कदम उठाये जाते है।
विशेष उल्लेख
उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश
अनुच्छेद 223 – राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है जब
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय रिक्त हो. या
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अस्थायी रूप से अनुपस्थित हो. या
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो।
अतिरिक्त और कार्यवाहक न्यायाधीश
- अनुच्छेद 224- राष्ट्रपति अस्थायी अवधि के लिए दो वर्ष के लिए नियुक्त कर सकता है।
- राष्ट्रपति तब भी नियुक्ति कर सकते हैं जब उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश के अलावा) हो
- अनुपस्थिति या किसी अन्य कारण से अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, या
- उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अस्थायी रूप से कार्य करता हो।
- अतिरिक्त या कार्यवाहक न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु के बाद पद पर नहीं रह सकता।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश
- अनुच्छेद 224A – किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय उस उच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अस्थायी अवधि के लिए कार्यकारी न्यायाधीश कम कर सकते है. वह ऐसा राष्ट्रपति की पूर्व संस्तुति एवं संबन्धित व्यक्ति की मंजूरी के बाद ही कर सकता है।
- न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा तय देय भत्तों का अधिकारी होता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय
- स्वतंत्रता पश्चात राजपूताना की तात्कालीन रियासतों को राजस्थान राज्य में एकीकृत किया गया था।
- राजस्थान राज्य के उद्घाटन से पहले इन रियासतों में अपने- अपने उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय कार्यरत थे।
- श्री बी आर पटेल, लेफ्टिनेंट कर्नल टी.सी. पुरी और श्री एस.पी. सिंह की एक समिति ने सिफारिश के आधार पर जयपुर को नए राजस्थान राज्य की राजधानी और उच्च न्यायालय को जोधपुर में स्थापित किया गया।
- राजस्थान राज्य का उद्घाटन 30 मार्च, 1949 को हुआ और तत्समय जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर और अलवर में कार्यरत पाँच रियासतकालीन उच्च न्यायालयों को राजस्थान उच्च न्यायालय अध्यादेश, 1949 द्वारा समाप्त कर दिया गया और राजस्थान में उच्च न्यायालय, जोधपुर का उद्घाटन किया गया।
- 29 अगस्त, 1949 को राजप्रमुख महामहिम महाराजा सवाई मान सिंह द्वारा 11 माननीय न्यायाधीशों को शपथ दिलाई गई।
- प्रारंभ में उच्च न्यायालय द्वारा जयपुर, उदयपुर, बीकानेर और कोटा स्थानों से भी सुनवाई की गयी।
- 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया और न्यायाधीशों की संख्या को घटाकर 6 कर दिया गया।
- RAS Pre 2021
- जस्टिस फारुक हसन 1985 से 1994 तक राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे।
- 1972 में, वह सवाई माधोपुर निर्वाचन क्षेत्र, राजस्थान में विधायक के रूप में चुने गए।
- बीकानेर कोटा और उदयपुर की बेच को 22 मई, 1950 से समाप्त कर दिया गया, लेकिन जयपुर बेंच निरंतर रही।
- कालांतर में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 की धारा 49 के तहत नवीन उच्च न्यायालय स्थापित हुआ जिसकी मुख्य पीठ जोधपुर में स्थित की गयी।
- राजस्थान का उच्च न्यायालय (जयपुर में स्थायी पीठ की स्थापना आदेश, 1976 द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर पीठ क फिर से जयपुर में स्थापित किया गया और 30 जनवरी, 1977 से जयपुर पीठ ने कार्य करना शुरू किया।
- राज्य को 35 जजशिप में विभाजित किया गया है जिसमे जिला जज कैडर के 388 कोर्ट, सीनियर सिविल जज कैडा के 319 कोर्ट और सिविल जज कैडर के 438 कोर्ट शामिल हैं।
- राजस्थान उच्च न्यायालय नियम 1952, समय-समय पर संशोधित, उच्च न्यायालय में प्रशासनिकव्यवसाय और न्यायिककार्य को विनियमित करते हैं
- प्रथम मुख्य न्यायाधीश– कमल कांत वर्मा।
- राजस्थान उच्च न्यायालय में वर्तमान में 50 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या है।
1 thought on “High Court Article”