प्रिय पाठकों, आप सभी का स्वागत है। इस लेख के माध्यम से Set Off in CPC के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। इस लेख में हम मुजरा या प्रतिसादन (Set-Off) के अभिप्राय, Set-Off के लिये आवश्यक शर्ते, मुजरा का प्रभाव, साम्यिक् मुजरा, साम्यिक् मुजरा के आवश्यक तत्व, विधिक एवं साम्यिक् मुजरा में अन्तर के बारे में step by step सविस्तार से चर्चा करेंगे।

Set Off Meaning In Hindi
Set Off in CPC अभिप्राय: वादी द्वारा धन की वसूली के लिये लाये गये वाद में यदि प्रतिवादी यह पाता है कि उसे भी वादी के विरुद्ध कुछ धनराशि अथवा रकम का दावा करने का अधिकार है तो वह उस राशि के संदर्भ में लिखित कथन के “विशेष कथन” खण्ड में वादी से उस राशि की माँग कर सकता है। राशि का यह दावा ही ‘मुजरा’ कहलाता है। इस वाद में यदि वादी को डिक्री प्राप्त होती है तो मुजरा की गई राशि को प्रतिवादी को नहीं चुकाना पड़ेगा।
इस प्रकार Set-Off प्रतिवादी द्वारा प्रतिरक्षा में किया गया एक ऐसा अभिवचन है जो समायोजन द्वारा वादी के दावे को या तो समाप्त कर देता है अथवा कम कर देता है।
Set-Off के लिये आवश्यक शर्ते :
1. वादी का वाद धन की वसूली के लिये होना चाहिये।
2. धनराशि निश्चित होनी चाहिये।
3. धनराशि विधि के प्रावधान के अनुसार वसूल करने योग्य होनी चाहिये।
4. यदि एक से अधिक वाही हो तो धनराशि सभी वादियों से वसूलने योग्य होनी चाहिये।
5. यदि एक से अधिक प्रतिवादी हों तो धनराशि सभी प्रतिवादियों द्वारा वसूलने योग्य होनी चाहिये।
6. धनराशि न्यायालय के आर्थिक क्षेत्राधिकार से अधिक नहीं होनी चाहिये।
7. वादी और प्रतिवादी की हैसियत मुजरा के दावे में भी वही होती है, जो वादी के बाद में होती है।
8. प्रतिवादी Set-Off की राशि की मांग लिखित कथन के अन्तर्गत वाद की प्रथम सुनवाई पर ही करे। उसके उपरान्त उसे ऐसा करने के लिये न्यायालय की अनुज्ञा लेनी पड़ेगी।
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Set Off in CPC का प्रभाव
1. जब प्रतिवादी मुजरा करने का तर्क देता है तो जिस राशि के संदर्भ में वह Set-Off की मांग कर रहा है उसके संदर्भ में वह वादी माना जायेगा।
2. यदि वादी का वाद खारिज कर दिया जाता है तो प्रतिवादी के दावे पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा यदि वह अपने मुजरे के दावे को साबित कर देता है तो उसके पक्ष में डिक्री पारित की जा सकती है (Order 20 Rule 19(1))
3. दोनों वादों (वादी का प्रतिवादी के विरुद्ध तथा प्रतिवादी का बादी के विरुद्ध) का विचारण एक ही साथ होता है।
4. Set-Off के वाद में लिखित कथन का प्रभाव वाद-पत्र के रूप में तथा वाद-पत्र का प्रभाव लिखित-कथन के रूप में होता है।
साम्यिक् मुजरा (Equitable Set-Off) (आदेश-20, नियम-19 (3))
इंग्लैण्ड के साम्य न्यायालयों द्वारा अनिश्चित धनराशि के मुजरे के सम्बन्ध में जिस अवधारणा को विकसित किया गया उसे ही ‘साम्यिक् मुजरा’ कहा गया है।
भारतीय विधि में साम्यिक् मुजरा की मांग Order-8 rule 6 के अधीन प्रतिवादी नहीं कर सकता है क्योंकि यह केवल वैध मुजरा की व्यवस्था करता है। साम्यिक Set-Off की उत्पत्ति सिविल प्रक्रिया संहिता केOrder-20 rule 19 sr 3 के उपबंधो से हुई हैं, जिसके अनुसार इस नियम के उपबन्ध लागू होंगे चाहे मुजरा Order-8 rule 6 के अधीन या अन्यथा अनुज्ञेय हो।” यहाँ ‘अन्यथा’ शब्द का प्रयोग के अतिरिक्त भी Set-Off के प्रावधान को निर्दिष्ट करता है। इसी के माध्यम से इंग्लिश विधि के साम्यिक् Set-Off की अवधारणा सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रविष्ट होती है।
साम्यिक् मुजरा के आवश्यक तत्व
क्लार्क बनाम रुथनावेलू 1865 के बाद में मद्रास उच्य न्यायालय ने निम्नलिखित तत्वों को साम्यिक Set Off के आवश्यक तत्वों के रूप में अभिनिर्धारित किया-
1. केवल धनराशि संबंधित दावों का ही साम्यिक मुजरा हो सकता है।
2. ऐसी धनराशि अनिश्चित भी हो सकती है।
3. ऐसी धनराशि का वाद हेतुक उसी संवयवहार में उत्पन्न हुआ हो जिसके लिये वादी द्वारा बाद लाया गया है।
4. इसके लिये कोई कोर्ट फीस देना आवश्यक नहीं
5. धनराशि का वसूली योग्य होना भी आवश्यक नहीं है (परिसीमा अधिनियम को छोड़कर)।
6. इस संदर्भ में न्यायालय को यह विवेकाधिकार है कि वह ऐसा अधिकार प्रतिवादी को दें या न दे।
विधिक एवं साम्यिक् मुजरा में अन्तर
विधिक मुजरा
1. Order-8 rule 6 में उपबन्धित है।
2. धनराशि निश्चित होनी चाहिये।
3. अधिकार के रूप में है।
4. उसी संवयवहार से उत्पन्न होना आवश्यक नहीं है।
5. यह परिसीमा अधिनियम द्वारा बाधित नहीं होना चाहिये।
6. न्यायालय शुल्क देना आवश्यक है।
साम्यिक् मुजरा
1. इसका जन्म साम्य न्यायालयों के निर्णयों द्वारा हुआ है
2. धनराशि अनिश्चित भी हो सकती है।
3. न्यायालय के विवेक पर है।
4. उसी संवयवहार से उत्पन्न होना आवश्यक है
5. परिसीमा अधिनियम द्वारा बाधित होने पर भी न्यायालय प्रदान कर सकता है।
6. न्यायालय शुल्क देना कोई आवश्यक नहीं
Set-Off क्या है?
Set-Off कहाँ लागू होता है?
1. वित्तीय लेखा (Financial Accounts): जब देनदारियां और प्राप्य दोनों एक ही पार्टी से संबंधित होते हैं।
2. कर प्रबंधन (Tax Management): GST या इनकम टैक्स में जब कर क्रेडिट और देनदारियां समायोजित की जाती हैं।
3. कानूनी विवाद (Legal Cases): जब दोनों पक्षों की देनदारियां अदालत द्वारा समायोजित की जाती हैं।
Set-Off के प्रकार क्या हैं?
2. सामान्य मुजरा (General Set-Off): यह वित्तीय लेन-देन में तब किया जाता है, जब पार्टियां अपने खातों का निपटान करती हैं।
3. GST इनपुट टैक्स क्रेडिट का मुजरा (Input Tax Credit Set-Off): GST में आउटपुट टैक्स देनदारी को इनपुट टैक्स क्रेडिट के खिलाफ समायोजित किया जाता है।
क्या Set-Off के लिए कोई शर्तें होती हैं?
देनदारियां और प्राप्य राशि एक ही पार्टी के बीच हों।
राशि की प्रकृति समान हो (जैसे नकद, टैक्स)।
पार्टियों के बीच स्पष्ट समझौता हो।
यह कानून या अनुबंध द्वारा अनुमति हो।
Set-Off के लाभ क्या हैं?
2. लेनदारी का निपटान: आसान और त्वरित संतुलन।
3. टैक्स बचत: GST या अन्य करों में सही उपयोग से कर भुगतान कम हो सकता है।
लेन-देन में पारदर्शिता।
Set-Off और समायोजन (Adjustment) में क्या अंतर है?
समायोजन: यह व्यापक शब्द है, जिसमें कोई भी वित्तीय परिवर्तन शामिल हो सकता है।
Set Off से संबंधित कानून कौन-कौन से हैं?
GST अधिनियम।
कंपनी अधिनियम।
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